मुक्तक : अमावस की अँधेरी में…
तुम्हारा साथ ही मुझको करता मजबूर जीने को
तुम्हारे बिन अधूरे हम विवश हैं जहर पीने को
तुम्हारा साथ पाकर के दिल ने ये ही पाया है
अमावस की अंधेरी में ज्यों चाँद निकल आया है
— मदन मोहन सक्सेना
तुम्हारा साथ ही मुझको करता मजबूर जीने को
तुम्हारे बिन अधूरे हम विवश हैं जहर पीने को
तुम्हारा साथ पाकर के दिल ने ये ही पाया है
अमावस की अंधेरी में ज्यों चाँद निकल आया है
— मदन मोहन सक्सेना