“कुंडलिया”
“कुंडलिया”
चहक चित्त चिंता लिए, चातक चपल चकोर
ढेल विवश बस मे नहीं, नाचत नर्तक मोर
नाचत नर्तक मोर, विरह में आँसू सारे
पंख मचाए शोर, हताशा ठुमका मारे
कह गौतम कविराय, बिरह बिना कैसी अहक
तोर मोर नहि जाय, तज रे मन कुंठित चहक़॥
महातम मिश्र (गौतम)
ठीक है !
ठीक है !