संस्मरण

मेरी कहानी 109

कभी कभी सोच आती है कि यह गृहस्थ जीवन भी कितना गुन्झालदार है, कभी दुःख, कभी सुख, कहीं दोस्त, कहीं दुश्मन कितने रूप हैं इस के, लेकिन कुछ भी हो जीना तो पड़ेगा ही। अक्सर हम कहते हैं गृहस्थ जीवन एक गाडी की तरह है जिस को दो पहिये चलाते हैं, एक पहिया कमज़ोर पड़ने लगे तो दूसरा जीवन को चलाये रखता है और रखना भी चाहिए । इसी लिए तो समाज ने गुरदुआरे मंदिर मस्जिद और गिरजे में इस बंधन को लोगों के सामने पक्का किया हुआ है और जो रस्में हैं वोह एक दुसरे से वादा ही तो है कि वोह जिंदगी भर कंधे से कन्धा मिला कर इस गाडी को चलाये रखेंगे। कुलवंत धीरे धीरे अच्छी हो रही थी। एक शहर में हमारे कुछ दोसत थे( नाम नहीं लिखूंगा ), उन को मिलने का प्रोग्राम हम ने बना लिया किओंकि वोह बहुत देर से हम से अनुरोध कर रहे थे कि हम उन के वहां आयें। उन को कुलवंत के बारे में पता था कि उस की सिहत ठीक नहीं रही थी और वोह किसी को जानते थे जो लोगों का इलाज करता था। मुझे कुछ दिनों की छुटियाँ थीं, इस लिए एक दिन हम उन को मिलने चल पड़े। रास्ता कई घंटे का था और हम ने घर में ही खाने के लिए बहुत कुछ बना कर गाड़ी में रख लिया। यों तो मोटर वे पर पचीस तीस मील पर जगह जगह कैफे बने हुए हैं लेकिन घर में ही अपनी इच्छा के अनुसार बनाया खाना अपना ही लुतफ देता है और यह बात भी यकीनी है कि बाहर जा कर भूख बहुत लगती है और खाना स्वादिष्ट लगता है। अगर मन करे तो कैफे से ले कर भी कुछ खा लेते थे लेकिन साथ में रखे खाने का एक हौसला सा होता था कि हमारे पास मसालेदार खाने थे जो कैफे से मिलने असंभव थे।

सुबह सुबह हम गाड़ी ले कर चल पड़े। जब भी कभी हम लौंग डिस्टेंस पर जाते थे, रास्ते में दो या तीन कैफे पर जरूर ठैहरते थे। एक तो गाड़ी ठीक ठाक है, उस के टायर देख लेते, इंजिन का बोनेट खोल कर तेल बगैरा चैक कर लेते और कुछ खा पी लेते। आधा घंटा या 45 मिनट आराम करके, कुछ खा पी कर हम फिर चल पड़ते। रास्ते में मज़े करते करते हम कुछ ही घंटे के बाद दुपहर को हम उन के यहां पहुँच गए। एक दूसरे को मिल कर हम बहुत खुश हुए, बच्चे गार्डन में खेलने लगे। खाते पीते और बातें करते करते शाम हो गई। फिर उन्होंने बताया कि आज शाम को उन के गुरु जी आने वाले थे। सात आठ वजे होंगे इस घर में कुछ और लोग गाड़ियां ले कर आने लगे। कमरा लोगों से भर गिया और सभी बातें करने लगे। 9 वजे के करीब गुरु जी आ गए, सब ने हाथ जोड़ कर सत सिरी अकाल बोला। गुरु जी को देख कर मैं हैरान सा हो गिया क्योंकि गुरु जी उम्र में तो मेरे से भी छोटे थे। गुरु जी के बड़े बड़े लम्बे सत्य साईं बाबा जैसे घुंगराले बाल जो शायद किसी टॉप हेअर सैलून से बनवाए गए लगते थे और उन की थ्री पीस ड्रैस मुझ को शर्मिंदा कर रही थी क्योंकि मेरे तो बहुत सस्ते साधाहरण कपडे थे। उन के पास एक बहुत छोटी सी एक या डेढ़ फ़ीट लम्बी छड़ी थी जो चलने के लिए तो थी नहीं, लगता था उन का ट्रेड मार्क ही होगा। अरे हाँ ! यह छोटी सी छड़ी कई योगी लोग भी जब बैठे होते हैं तो आराम करने के लिए उस पर अपनी कलाई रखे बैठे हुए होते हैं। कुछ भी हो गुरु जी बहुत हंसमुख थे और उन के आते ही कमरे में बहुत खुशगवार वातावरण हो गिया था.

रात के दस वज गए होंगे एक सज्जन जो मुझे जानते ही थे vat 69 विस्की की बोतल भीतर से ले आये और साथ ही विस्की के ग्लास्ज़ मेज़ पर रख दिए। और पीने वाले लोग जानते हैं कि यह vat 69 का नंबर कमबख्त सीधा हो तो 69 होगा ही लेकिन इस को उल्टा करो, तो तब भी यह 69 ही होगा। अब इस का असर उल्टा तो होगा ही। बात को ज़्यादा न बढ़ाऊं, गुरु जी विस्की पीने लगे, दूसरे लोग तो पी ही रहे थे। मैंने कुछ नहीं लिया क्योंकि मैं शुरू से कभी कभी ही पीता तो था लेकिन इतना शौक़ीन नहीं था और अब तक यह ही मेरा रुझान है। कुछ देर बाद लगा गुरु जी टल्ली होने जा रहे हैं यानी vat 69 की बोतल उलटी होने जा रही है, गुरु जी अजीब सी ऐक्टिंग करने लगे और फारसी बोलने लगे, फिर हिंदी पर आ गए “तुम कौन हो ? किया चाहते हो ? कश्मीर वाले महाराज जी आएंगे तो तुम्हारे जूते मारेंगे, ज़्यादा मुंह ना खोल ! बड़े बड़े दांत मुझे ना दिखा “ऐसी ऐसी और भी बातें गुरु जी कर रहे थे जो अब ज़्यादा मुझे याद नहीं हैं। लगता था गुरु जी को अब हवा आ गई थी। एक औरत को कुछ हो गिया, बोलने लगी, ” भा जी मुझे कुछ हो गिया, भा जी मुझे कुछ हो गिया”बोले जा रही थी। गुरु जी बोले, ” पानी का ग्लास लाओ “. उस का पति जल्दी से पानी का ग्लास ले आया। गुरु जी के दोनों हाथों की सभी उंगलिओं पर मोटे मोटे नगों वाली अंगूठीआं थीं। गुरु जी ने सारी उंगलीआं पानी के ग्लास में डाल दीं और हाथ से कुछ पानी भर कर उस औरत की आँखों पर जोर से मारा। वोह औरत कुछ तड़पने लगी, बोली ” भा जी पानी आँखों को बहुत लगता है, भा जी बहुत दर्द करता है “. पता नहीं गुरु जी की अंगूठी के नग में किया था। फिर गुरु जी ने उस औरत की आँख को अपने हाथ की एक ऊँगली और अंगूठे से खोला और लोगों को दिखाने लगे, ” देखो इस की आँख में आधा चंद्रमा बना हुआ है और यह किसी ने कुछ किया हुआ है, मुझे इस का पता करना होगा कि यह किस ने किया है “.

यहां मैं यह बता दूँ कि उम्र के बढ़ने पर कुछ लोगों की आँखों पर कुछ कुछ चर्बी सी दिखने लगती है और यह नॉर्मल है। अब कुछ और औरतें भी आगे आ गईं और गुरु जी उन का उधार करने लगे। बाहर बारश शुरू हो गई थी। गुरु जी लोगों का भला कर रहे थे और बारश एक दम तेज़ मूसलाधार हो गई, बिजली कड़कने लगी (झूठ नहीं लिख रहा हूँ, बिलकुल सच है ). गुरु जी ने गुस्से में एक दम पैटीओ डोर खोल दी और तेज बारश में ही कपड़ों की परवाह ना करते हुए बाहर गार्डन में आ गए, उन के पीछे ही कुछ लोग भी चल दिए। कुलवंत और मैं एक दूसरे की ओर देख कर मुस्कराये। बाहर गार्डन में एक छोटा सा फिश पौंड था, जिस में गार्डन की खूबसूरती के लिए छोटी छोटी रंग बरंगी मछलीआं रखी हुई थीं। गुरु जी उस फिश पौंड में स्टैप इन करके हाथों से पानी को हिलाने लगे। दो तीन मिनट ऐसा करने के बाद वोह फिश पौंड से बाहर आ गए। अब गुरु जी के हाथ में बहुत सी जंग लगी हुई कीलें थीं, पता नहीं कहाँ से ले आये, शायद पहले से ही उन्होंने जेब में डाल रखी होगी। फिश पौंड अँधेरे में था और ऐसा जादू करना कोई मुश्किल नहीं था। वोह कीलें हाथ में लिए भीतर आ गए। भीतर आ कर सोफे में धंस गए, कुछ मिनट इसी तरह आँखें बंद करके बैठे रहे। फिर आँखें खोल कर बोले, ” भई ! यह कपडे क्यों भीगे हुए हैं, भीतर बैठे बैठे कपडे कैसे भीग गए ?”.

लगता था गुरु जी की हवा अब खत्म हो गई थी। अब औरतें हंसने लगीं, ” गुरु जी, तुम तो यहां थे ही नहीं, गुरु जी आप तो चोज कर रहे थे, गुरु जी आप के तो काम ही इलग्ग हैं, पता नहीं आप कहाँ कहाँ घूम रहे थे, गुरु जी आप कपडे चेंज कर लो “. इस के बाद घर वालों ने गुरु जी से कोई बात की और गुरु जी ऊपर के कमरे में चले गए। उन के पीछे ही कुछ और लोग चले गए और उत्सुकता वष मैं भी ऊपर चला गिया। गुरु जी के आगे दो तीन कपड़ों के सूटकेस पड़े थे, उन्होंने खोलने को बोला। सूटकेस में पड़े लेडीज़ सूट और साड़िओं को वोह धियान से देखने लगे। कोई निशान किसी रंग का साड़ी पर लगा होता तो वोह एक तरफ फैंक देते। किसी सूट पर कोई और रंग का छोटा सा धागा लगा होता तो उस को भी फैंक देते। ऐसे करते करते उन्होंने बहुत बड़ीआ बड़ीआ कपडे एक कपडे में बाँध दिए और बोले, ” आप इन कपड़ों को किसी दरिआ में डाल आइये क्योंकि इन्हीं कपड़ों पर किसी ने आप का बुरा किया हुआ है “. घर वाले बोले, ” महाराज यह काम आप ही करें “. गुरु जी ने सारे कपडे जिन में कीमती साड़ीआं और कुछ और सूट थे, अपनी गाड़ी में रख लिए और कुछ देर बाद चलते बने। अब सारे लोग धीरे धीरे चले गए और हम भी सो गए।

दूसरे दिन हम शहर को चल दिए और बहुत से इत्हासक अस्थान देखे। शाम को हम ने कुछ और लोगों से मिलना था और एक पब्ब में इकठे होना था। जब हम एक बड़े से पब्ब में पहुंचे तो कुछ लोग पहले ही टेबलों पर बैठे बीअर के ग्लास ले कर बैठे थे और परिओं जैसी गोरी लड़किआं हंस हंस कर ग्राहकों को ग्लास सर्व कर रही थीं, लड़किओं की पिछली ओर दीवार पर तरह तरह के किसम की शराब की बोतलें पड़ी थीं और कुछ उलटी टंगी हुई थीं जिस में से वोह ग्राहकों को उन के पसंद का पैग बना कर देती थीं .जब हम पब्ब की बार में गए तो कुछ दोस्त उठ कर हमारी तरफ आ गए और अपने बटुए खोल कर, किया पीना है, किया पीना है कहने लगे। हम ने अपनी चॉएस बता दी और ग्लास टेबलों पर आ गए। हम पीने लगे और बातें शुरू हो गई। बात कभी किसी टॉपिक पे होती कभी किसी पे और कुछ लोग जोक्स सुनाने लगे। पब्ब एक ऐसी जगह है यहां वक्त पंख लगा कर उड़ जाता है। रात के दस वज गए थे और बातें जारी थीं।

करते करते बात उसी गुरु जी पर आ गई। एक ने बात सुनाई, ” भई !गुरु हुशिआर बहुत है, एक दिन उस ने मुझे एक बात सुनाई, कहने लगा”, “एक दिन मेरे घर एक आदमी आया और मेरे कमरे में आ कर रोने लगा, उस दिन अपने अपने कष्ट निवारण कराने के लिए बहुत लोग मेरे घर आये हुए थे, वोह बोला, गुरु जी मेरी लड़की घर से भाग गई है, हम ना तो किसी को बता सकते हैं ना पुलिस को रिपोर्ट कर सकते हैं क्योंकि इस से हमारी बदनामी हो जायेगी, गुरु जी हम पर कृपा करो. मैंने उस को भरोसा दिया कि मैं उस के लिए सब कुछ करूँगा, वोह रोता हुआ चले गिया और अपना टेलीफून नंबर मुझे दे गिया, ऐसा हुआ कि एक हफ्ते बाद उस की लड़की भी मेरे पास आ गई, चिंता में डूबी वोह बोली कि उस ने घर से भाग कर गलती कर ली थी, अब उस को पता नहीं चलता था कि वोह किया करे, मैंने उस को कहा, कि वोह बुध के रोज़ दस वजे अपने घर का दरवाज़ा खड़काए, डरने की बात नहीं, उस के पिता जी उस को गले से लगाएंगे और वोह लड़की चले गई, मैंने उसी वक्त उस के बाप को टेलीफून किया कि हम ने उन के लिए मंत्र पढ़ दिया है, बुध के रोज़ उन की लड़की दरवाज़ा खड़काएगी और वोह लड़की को गले लगा लें, भगवान भली करेगा, एक हफ्ते बाद वोह शख्स मेरे पास आया और मेरे आगे दो सौ पाउंड रख दिए और ख़ुशी ख़ुशी अपने घर चले गिया ” और इतनी बातें कह कर गुरु हंसने लगा .

सभी दोस्त इस कहानी को सुन कर हंस रहे थे लेकिन मैं अपने ख्यालों में गुम हो गिया था। हम घर आ गए और खाना खाया, कुछ देर बातें करने के बाद सो गए और सुबह को अपने शहर की ओर चल दिए। इस के बाद तकरीबन चार हफ्ते बाद हमें अपने दोस्त का टेलीफून आया कि कश्मीर वाले महाराज जी हमारे टाऊन के नज़दीक के शहर में आ रहे हैं और वोह एक और परिवार के साथ उन को मिलने के लिए आ रहे हैं और हम उन को वहां मिलें। इस के इलावा कुलवंत के मामा जी की लड़की बलबीर का भी फोन आया कि वोह भी महाराज जी को मिलने आ रहे हैं। उस दिन मैं और कुलवंत उस घर पर जा पहुंचे यहां महाराज जी ठहरे हुए थे। सारा घर लोगों से भरा हुआ था, लोग सीढ़ीओं पर खड़े थे। हमारे दोस्त पहले से ही वहां पहुंचे हुए थे। महाराज जी के दो लड़के एक कमरे में बैठे विडिओ लगाए टीवी पर एक फिल्म देख रहे थे, यह वोह समय था जब विडिओ अभी किसी किसी के पास ही था क्योंकि अभी बहुत मैहँघे थे. एक एक करके सभी लोग महाराज जी के कमरे में जा रहे थे, कुछ देर बाद हम दोनों भी महाराज जी के सामने जा बैठे, उस वक्त महाराज जी अपने को इन्सुलीन का इंजैक्शन लगा रहे थे क्योंकि महाराज जी डायबेटिक थे। इंजैक्शन लगा कर महाराज जी ने सिगरेट के दो लम्बे लम्बे क्श लिए और दोनों हाथ जोड़ कर ऊपर किये और उन के हाथों में दो मिश्री की छोटी छोटी टिक्कीआं आ गई थीं, पता नहीं कहाँ से । हम ने दोनों हाथ महाराज की ओर बढ़ाये और उन्होंने हमें मिश्री का परसाद दे दिया और कहा कि हम दो पाउंड शिव जी की फोटो के आगे रख कर माथा टेक दें जो हम ने किया और कमरे से बाहर आ गए।

क्यों हम ने दो पाउंड दिए मुझे आज तक याद नहीं। इस के बाद हमारे दोस्त हमारे साथ हमारे घर की ओर चल पड़े। दाल सब्जिआं मीट बगैरा तो हम पहले ही तैयार कर के गए थे। जब घर आये तो मेरे वोह दोस्त आपस में बातें कर रहे थे और मैं सुन रहा था। मेरे दोस्त का दोस्त जिस को मैं नहीं जानता था, उस का बेटा भी उस के साथ आया हुआ था। वोह उस गुरु जी की निंदा कर रहा था जिस को मैंने उस दिन देखा था। वोह बता रहा था कि उस गुरु ने एक साल तक उस की नई गाड़ी इस्तेमाल की और उस के पांच हज़ार पाउंड खाए, वोह धोखेबाज़ था और जब उस ने पांच हज़ार पाउंड गुरु से मांगे तो वोह साफ़ मुक्कर गया कि उस ने लिए ही नहीं थे।

वोह ज़माना बहुत पीछे छूट गिया है और यह सब लिखते हुए मुझे हंसी आ रही है लेकिन एक बात है, उस गुरु की फोटो अब भी एक पंजाबी के अखबार में आती है जिस में वोह बहुत बूढ़े दिखाई देते हैं । चलता . . . . .

11 thoughts on “मेरी कहानी 109

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। पूरी किश्त पढ़कर इसमें दी गई जानकारी का आनंद लिया। आपने गुरु जी विषयक जो जानकारी दी है वह मुझे ढोंग और ठगी का प्रयाय लगता है। गुरु वह होता है जो ईश्वर व आत्मा का सच्चा परिचय कराने के साथ सद्कर्म करने की प्रेरणा देता है। ऐसे गुरु अब कहीं शायद ही मिले। अगली किश्त पढ़कर कुछ समय के बाद कुछ शब्द लिखूंगा। कल १२ मार्च को टंकारा, रोजड और जोधपुर की यात्रा करके लौट आया हूँ। यात्रा बहुत अच्छी व सफल रही। आज की किश्त के लिए धन्यवाद। सादर।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      मनमोहन भाई ,धन्यावाद . यह जो मैंने लिखा है ,इन गुरुओं की ठ्ग्गी का पूरा हाल नहीं लिखा किओंकि इस में कुछ पातर ऐसे हैं जिन के बारे में चाह कर भी मैं नहीं लिख सकता .

      • Man Mohan Kumar Arya

        जी धन्यवाद। नमस्ते। सादर।

  • विजय कुमार सिंघल

    यह कडी भी बहुत रोचक रही भाईसाहब !
    बाबाओं का धंधा मूर्खता और अंधविश्वास पर चलता है। आज भी ऐसे बाबाओं की संख्या बहुत है।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद विजय भाई ,बाबाओं पर मुझे इतना गुस्सा नहीं जितना लोगों के अंधविश्वास पर है . यहाँ भी बहुत बाबे हैं जो लोगों को लूट रहे हैं .तर्कशील सोसाएटी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन ने बाबाओं को चैलेन्ज दिया हुआ है और एक लाख पाऊंड का इनाम रखा हुआ है कि कोई बाबा उन के सवालों का जवाब दे कर यह राशि जीत सकता है लेकिन कोई बाबा आगे आता ही नहीं .कई बाबाओं को जेल भी हुई है लेकिन हम भारती किस मट्टी के बने हुए हैं कि वोह खुदबखुद लूट हो रहे हैं .

      • Man Mohan Kumar Arya

        Namaste and thanks. तर्क़शील सोसाइटी ऑफ़ ब्रिटेन के प्रश्न क्या हैं? कृपया सूचित करें। मैं भी उन पर विचार करूँगा और अपनी क्षमता के अनुसार उत्तर दूंगा।

        • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

          मनमोहन भाई , इस की जानकारी मुझे पूरी है नहीं .ना बोल सकने के कारण मैंने कभी उन से बात नहीं की ,मैं तो उन को कभी कभी रेडिओ पर ही सुनता हूँ .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, कभी-कभी हमारे इर्द-गिर्द ऐसा मक्कड़जाल फैल जाता है, कि उससे बचकर निकलना मुश्किल होता है. आप बच गए, शुक्र है, तभी हंस रहे हैं और हंसा रहे हैं. किसी को हंसाना दुनिया का सबसे पुण्य कार्य है. इस पुण्य कर्म के लिए आभार.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद लीला बहन . जब मैं ठीक ठाक था तो इस बात को मैं अपने दोस्तों को कुछ मसाला ला कर सुनाया करता था और हंसाया करता था .अभी कल ही मैं यूतिऊब पर एक एक गोरे बाबे को देख रहा था जो बिचारी भोली भाली ग्रामीण औरतों के माथे पर टीका लगा रहा था और वोह औरतें उस के आगे पैसे रख कर माथा टेक रही थीं . हमारी सोच ही कुछ अजीब सी है कि “कृपा हमें लूट लो “

      • विजय कुमार सिंघल

        ऐसे दृश्य सभी जगह नज़र आते हैं !

        • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

          बिलकुल सही कहा भाई साहब .

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