मतलबी जहाँ
अब प्यार के मुनासिब , कहीं कोई दिल नहीं मिलता,
अब दिल के आँगन में प्यार का गुल भी नहीं खिलता,
यहाँ कब तक उम्मीद रखें इस मतलबी जहाँ से ,
जहाँ मतलब के बिना रिश्तों का पत्ता नहीं हिलता,
अगर कुछ है मुनासिब तो बस उस प्रभु की कृपा है,
परमेश्वर की कृपा के साथ ही मेरा हर काम हुआ है.
खुदा को भुला के जो खुद को समझ बैठे हैं आका,
उन को नहीं हैं इल्म की ऐसों का क्या हश्र हुआ है,
अब तो हर बात में है मतलब हर चाह में है मतलब,
अब दोस्ती में मतलब हर नाते रिश्ते में है मतलब,
अब जश्न में भी मतलब और मातम में भी मतलब
अब सोचता हूँ की क्यों रखूँ, ऐसी दुनिया से भी मतलब ,
रखना ही है जो मतलब तो अपने परिवार से रख ले.
किसी मज़बूर बे सहारे के लिए ‘परोपकार’ से रख ले,
जो कुछ भी बन्दा करता है सब प्रभु की निगाह में है,
कभी मत भूलना ऐ बन्दे, की तूं उसकी पनाह में है, –जय प्रकाश भाटिया
अच्छे मुक्तक !