गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

काम औरों के जो आए, जिंदगी वो जिंदगी
ज़ख्म खाकर मुस्कराए, जिंदगी वो जिंदगी

चाहिए ऐसा सनम जो हर अदा पर जान दे
चाँद तारे तोड़ लाए, जिंदगी वो जिंदगी

झूमती आई घटा इक, पर्वतों पर छा गई
रुत सुहानी ये लुभाए, जिंदगी वो जिंदगी

प्यार का इकरार करके तुम रकीबों से मिले
दिलवरों से हार जाए, जिंदगी वो जिंदगी

जिंदगी है इक ग़ज़ल और बह्र इसकी साँस है
गुनगुनाते बीत जाए, जिंदगी वो जिंदगी

कुछ नया कर ले तू ‘रेनू’ आज के इस दौर में
क्या पता कल हो न पाए जिंदगी वो ज़िन्दगी

रेनू मिश्रा 

रेनू मिश्रा

एम.ए., बी.एड. शिक्षिका (डी.ए.वी.स्कूल, रांची) मोबाइल: 7549001308