गीत/नवगीत

गीत : आरक्षण की चाह में…

आरक्षण की चाह में तू क्यों यूँ देश फूंकता जाता है
अपना घर ही फूंक रहा तू क्यों ये भी समझ न पाता है

क्या कर लेगा ऐसा आरक्षण जो तुझे नीचा दिखायेगा
इतना जान ले मांगने वाला सदा हाथ फैलायेगा

अपनी मेहनत से लिखो तुम सदा अपनी किस्मत को
मांगकर आरक्षण न शर्मिंदा करो अपनी अस्मत को

आरक्षण बना है जो देश में जो मजलूम हैं मजबूर हैं
आरक्षण न लेकर दिखा दे तुझमें हिम्मत भरपूर हैं

कहीं उखाड़े पटरियों को कहीं तू बसों को जलाता है
क्यों तू भूला पगले, ये सब तेरी कमाई से ही तो आता है

गर सब मांगेगे आरक्षण तो कौन बाकी रह जाएगा
तेरे बच्चों को पढ़ाने तब आरक्षण वाला टीचर ही आएगा

फिर भी चाहिए आरक्षण तो हर बात में उसकी की मांग करो
चंद सुविधाओं की खातिर तुम यूँ न देश का सत्यानाश करो

मांगो आरक्षण सैना में भी, देश सेवा में भी जुट जाओ
मुफ़्त की रोटियां तोड़ने के लिए न आरक्षण लेने आओ

जाओ सियाचिन के पहाड़ों पर वहां हिम्मत दिखलाओ
जाम लगाकर, ट्रेन रोककर यूँ न ताकत दिखलाओ

दरकार है अब तो सरकार ही कुछ ऐसा काम कर जाए
आरक्षण लेने वाले हर कोटे से सैना में जवान भर जाए।

— प्रिया वच्छानी

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]

One thought on “गीत : आरक्षण की चाह में…

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा गीत !

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