कविता

कविता : स्त्रीलिंग

वो आया,
हँसा
बोला
सुना
चिल्लाया
फिर थोड़ा मुस्कराया,
तलब लगी थी ,
हाथ में लिया ,
ऊँगलियों में फँसाया,
मुँह से लगाया..
धुएँ के गोल-गोल छल्ले बनाये,
सारा नशा धीरे – धीरे खींच लिया
सुलगती राख कोने में झाड़ दी,
बचा हुआ टुकड़ा भी
पैरों तले मसल दिया..
जूते की एड़ी से कुचल दिया,
पता नहीं !!
मैं या सिगरेट ..
सिगरेट या मैं !!
हुँअ !!
क्या फर्क पड़ता है ??
सिगरेट हो या औरत ,
हैं तो दोनों ही स्त्रीलिंग!

शालिनी ‘कशिश’

शालिनी 'कशिश'

साहित्यिक नाम – शालिनी “कशिश” पूरा नाम – शालिनी सिंह पति – श्री राजेन्द्र सिंह पिता – श्री राघवेंद्र प्रताप सिंह माता - श्रीमती रमा सिंह शिक्षा - परास्नातक इतिहास तथा राजनीति विज्ञान इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश । बी.एड . – श्री छत्रपति साहू जी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय, कानपुर उत्तर प्रदेश । निवास - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश ) पिन कोड -212601 संप्रति - सहायक अध्यापिका फतेहपुर, उत्तर प्रदेश

One thought on “कविता : स्त्रीलिंग

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    वाह
    गजब की तुलना

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