छोटी सी बात
करुणावती पत्रिका के लिए जब राशि देने का समय आया तो दुविधा ये हुई कि मैं रहती पटना में हूँ …. पैसा भेजना कानपूर है … { तब NEFT जैसे कार्य से परिचित नहीं थी } बैंक का जमाना है …. लेकिन खुद कभी बैंक की कार्यवाही की नहीं थी …. अपने पति से कहने का मतलब था …. ना …. जबाब पाना …
घर के अलमीरा पुस्तकों से भरी पड़ी है ….. ऐसे में नई किताबें खरीदने के इच्छुक ना खुद हैं , ना इजाजत देते हैं …. तब वे पुतर आनंद जी से परिचित भी नहीं थे …. परिचित भी होते तो मना कर देते …. बिना बताये कार्य कर लेती हूँ … लेकिन मना किये कार्य करना अच्छा नहीं लगता है …. जब महबूब – माया के शादी के पार्टी में पुत्र आनंद जी आये तो उन्हें करुणावती पत्रिका की राशि उन्हें चुपके से थमा दी …..
जब साझा नभ का कोना हाइकु साझा संग्रह छपने की योजना चली तो फिर इनकी इजाजत मिलना दुरूह कार्य था …. तब तो मेरे पति हाइकु का सुबह शाम मजाक उड़ाया करते थे …. उनका मज़ाक होता था
1. किसी अनुवाद कर्ता को रखना होगा
2. तीन पंक्तियों के लिए तीन पेज की कुंजिका छपवानी होगी
तब मुझे एक शादी में लखनऊ जाना पड़ा …. वहीँ से मौका मिल गया कानपूर जाने का …. कानपूर में मिल गया सभी समस्याओं का हल ….. लेकिन साझा नभ का कोना छपने के पहले ही …. कलरव तानका सेदोका साझा संग्रह छपने की बात चली और उसकी राशि देने के लिए हिम्मत कर अपने पति से बात कर ही ली और तभी हाइकु की बात भी बता दी …. विमोचन दिल्ली में होना तैय था तो …. टिकट दिल्ली का भी करवाना था …. सब छिपा कर नहीं किया जा सकता था …. इनके विरोध का सामना करना ही था और इनको सहमत भी करवाना था …. पैसा तो महबूब – माया भी देने के लिए तैयार थे …. लेकिन मुझे अपने पति को तैयार करना था …. क्यूँ कि वो मेरा हक़ भी था और सबकी ख़ुशी भी तभी शामिल होती ….
अपनी दशा दिशा बदलने के लिए हिम्मत करनी चाहिए ….
स्त्री नारी महिलाओं को बहुत छोटी सी बात बता रही हूँ …. छोटी छोटी कोशिश ही कामयाबी की नीव होती है
स्त्री नारी महिलाओं को बहुत छोटी सी बात बता रही हूँ …. छोटी छोटी कोशिश ही कामयाबी की नीव होती है
तीसरी – चौथी किताब की भी बात चली है …. और पटना में विमोचन के लिए भी
इनके सहयोग की उम्मीद लगा रखी हूँ …..
छोटी सी बात
विष पी स्त्री जी
ना तैय होती सीमा
क्यों ड्योढ़ी छोड़ेसच है न धरा धारा स्त्री की सीमा तैय करना आसान नहीं ….. कूल तब नासती है जब ऊब-चुभ की स्थिति तक पहुंचती है ….. ऊब-चुभ की मनोस्थिति तक प्रतीक्षा ही क्यों करें ….. ड्योढ़ी लांघ , खुले नभ के निचे , बियाबान , मरुथल क्यों झेलें
ना तैय होती सीमा
क्यों ड्योढ़ी छोड़ेसच है न धरा धारा स्त्री की सीमा तैय करना आसान नहीं ….. कूल तब नासती है जब ऊब-चुभ की स्थिति तक पहुंचती है ….. ऊब-चुभ की मनोस्थिति तक प्रतीक्षा ही क्यों करें ….. ड्योढ़ी लांघ , खुले नभ के निचे , बियाबान , मरुथल क्यों झेलें
*बेंवड़ा चढ़ा परेशानियों को ही क्यों ना कुटें ?
*बेंवड़ा = वह लकड़ी जो बन्द द्वार के पीछे लगाई जाती है = अरगल
बढिया !
सही कहा आपने