दहेज
अरी बहन! जाते-जाते सुनती जा ज़रा
मेरी गपशप में है आज, खुशी का रंग भरा
मुहल्ले वालियाँ, बड़े शान से अकड़ के चलती हैं
पर मुझे देख आज, अपना हाथ मलती हैं
उन्होंने अपना-अपना लड़का बेचा, तो क्या ख़ाक में बेचा
देख तीर मारा मैंने और एक करोड़ सवा लाख में बेचा
अरी यहाँ बेचने का हुनर आना चाहिए
और खरीदारों को कौशल से मनाना चाहिए
देख मैंने दिया कैसा-कैसा भरोसा
तब कहीं जा कर अपना लड़का परोसा
अरे जब संसार ने इतनी बढ़ियाँ रीति निकाली है
तो मैंने भी बहती गंगा में बाँह तक धो डाली है।
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शुक्रिया
करारा व्यंग्य !