पिला रहे हो जो हमको इतनी…
पिला रहे हो जो हमको इतनी,जरा बताओ इरादा है क्या॥
बहक गये जो कदम हमारे, सम्हालने का भी वादा है क्या॥
नशा तो नजर-ए-हुज़ूर में है, नज़र से पीकर सूरुर में हैं।
तो पैमानो से पियेगे क्यूं हम, सूरूर इसमें ज्यादा है क्या॥
छलकते ये ज़ाम ना पियेगें, ये मय तो है आम ना पियेगे।
पियेगें हम तो लबों से मय बस, लबों से छलके ज्यादा हैं क्या॥
अभी ख़ुमारी नही है हमको, ये दारू प्यारी नही है हमको।
नशा भला इस सुरा में बोलो, अदा से उनकी ज्यादा है क्या॥
झुका के नज़रें जो वो उठा दे, मय की मयकश को भी भुला दे।
नशा भला मयकदा में कहिये, निगाह से उनकी ज्यादा है क्या॥
अभी होश है करो न तौबा, अभी तो छलके है ज़ाम मय के।
नीयत पे मेरी धरो न तोहमत, समझो उनका इरादा है क्या॥
वो छू दे ग़र पानी प्यार से तो, बने पुरानी शराब वो भी।
हमे छुआ है बहुत प्यार से, न जाने उनका इरादा है क्या॥
सतीश बंसल
वाह वाह !
शुक्रिया आद. विजय जी…
बढ़िया रचना.
शुक्रिया आद. लीला जी..
उम्दा रचना
धन्यवाद आद. विभा जी..