बिटिया के लिए माता की आशीष
मेरी प्रकाशित पुस्तक ‘श्री हरि-भजनामृत” से बेटी के लिए भावगीत
उठ जाग बिटिया माता की आशीष है, आशीष है,
सद्बुद्धि तुमको दें प्रभु आशीष है, आशीष है.
संतों का तुझको संग मिले आशीष है, आशीष है,
संतोष-धन से पूर्ण हो आशीष है, आशीष है.
परमात्मा काध्यान हो आशीष है, आशीष है,
सद्गुण से हो भरपूर तुम आशीष है, आशीष है.
नित गुरुजनों को मान दो आशीष है, आशीष है,
छोटों पे बरखा प्यार की आशीष है, आशीष है.
बलवान हो बुद्धिवान हो आशीष है, आशीष है,
जग में बढ़े सम्मान यह आशीष है, आशीष है.
आयु बड़ी हो स्वस्थ हो आशीष है, आशीष है,
दुःखियों का दुःख हरती रहो आशीष है, आशीष है.
जग का करो कल्याण आशीष है, आशीष है,
मन में न हो अभिमान यह आशीष है, आशीष है.
सत्पथ पे नित चलती रहो आशीष है, आशीष है,
निष्काम हो निर्भय रहो आशीष है, आशीष है.
जगें भाग बिटिया माता की आशीष है, आशीष है,
सद्बुद्धि तुमको दें प्रभु आशीष है, आशीष है.
बिटिया के लिए ”माता की आशीष” गीत की सृजन-प्रक्रिया-
एक दिन मैं सुखमनी साहब के पाठ से आई. वहां जन्मदिन के उपलक्ष में गुरद्वारा साहिब के भाई जी ने ”पूता माता की आशीष” शबद गाया. यह शबद गुरु साहिब की माताश्री ने अपने बेटे के लिए गाया था. भाई जी ने गीत इतना भावपूर्ण गाया, कि मेरे अंतर्मन में गहरे पैठ गया. घर आकर मैंने सोचा, कि गुरु साहिब की माताश्री अपनी संतान के लिए लिख सकती हैं, मैं भी माता हूं, मैं क्यों नहीं लिख सकती. तुरंत गीत लिखकर फेयर किया और याद कर लिया. अगले दिन सुबह यह गीत गाकर बिटिया को जगाने की कोशिश की. गीत पूरा होते ही चार वर्ष की बिटिया बोली- ”ममी, और गाओ न! आपने बंद क्यों कर दिया?”
मैंने कहा- ”तो सारा गीत सुन लिया और सोई रही?”
”और क्या?” बिटिया बोली- ”मैं पहले ही उठकर बैठ जाती, तो आपका इतना सुंदर गीत पूरा कैसे सुन पाती. इस गीत का मेरे लिए सिंधी में अनुवाद कर देना.”
अगले दिन से बिटिया को सिंधी में और बेटे को हिंदी में गीत गाकर जगाने लगी. दोनों बच्चे हंसते-हंसते आराम से उठने लगे और गीत के आशीर्वाद भी अपना असर दिखाने लग गए.
हरि ओम.
गीत के शब्द सात्विक गुण प्रधान एवं मार्मिक हैं। हार्दिक धन्यवाद एवं नमस्ते बहिन जी।
प्रिय मनमोहन भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको गीत के शब्द सात्विक गुण प्रधान एवं मार्मिक लगे. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
बहुत खूब, बहिन जी !
शुक्रिया.
लीला बहन, पूता माता की आशीष तो जिंदगी में हज़ारों दफा सुना लेकिन आप के लिखे इस गीत से इस पूता माता की आशीष के शब्द की महमा और भी बड गई .
प्रिय गुरमैल भाई जी, मैंने खुद बचपन से इस शबद को बहुत सुना था, पर कभी अंतर्मन में पैठ नहीं पाया. उस दिन भाई जी ने इतना मन से गाया, कि शबद मेरे मन में उतरता गया. दो कदम पर घर था, फिर भी घर पहुंचते-पहुंचते भजन तैयार हो गया था. वक्त-वक्त की बात होती है. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.