गीत : रक्तबीज
(आरएसएस और आईएसएस की एक समान तुलना करने पर गुलाम नबी आज़ाद को जवाब देती मेरी नई कविता)
केसर की क्यारी में उपजा पौधा एक विषैला है,
ये गुलाम आज़ाद नबी तो बगदादी का चेला है
सन् सैतालिश में ही भारत भाग्य लगा था फूट गया,
बटवारे के बाद यहाँ ये कूड़ा करकट छूट गया
कूड़ा तो कूड़ा होता है बदबू को फैलाया है,
गोबर में जन्मे कीड़ों ने अपना मुख दिखलाया है
जिनके ज़हनों में लटके अंधे मज़हब के ताले हैं,
स्वयंसेवकों को वो दहशतगर्द बताने वाले हैं
निश्छल त्याग तपस्या व्रत को हिंसक छल से तौला है,
गंदे नालों के पानी को गंगाजल से तौला है
तौल दिया तुमने वृक्षों को आरी और कटारी से,
भस्मासुर की तुलना कर दी चक्र सुदर्शन धारी से
संघ, जहाँ पर मानव सेवा पाठ पढ़ाया जाता है,
संघ, जहाँ पर देश धर्म का सबक सिखाया जाता है
संघ, जहाँ पर नारी को देवी सा माना जाता है,
संघ, जहाँ पर निज गौरव पर सीना ताना जाता है
संघ, जहाँ पर फर्क नही है हिन्दू या इस्लामी में
एक नज़र से सेवा करते बाढ़ और सूनामी में
संघी वो है, जिसने भू पर बीज पुण्य का बोया है,
काश्मीर-केदारनाथ के भी घावों को धोया है
महामारियों में रोगी की छूकर सेवा करते हैं,
संघी वो हैं जो भारत की खातिर जीते मरते हैं
इनकी तुलना कैसे कर दी, रक्त चाटने वालों से,
नन्हे मुन्हे मासूमों के शीश काटने वालों से
नारी को अय्याशी का सामान बनाने वालों से,
बाज़ारों में इज़्ज़त को नीलाम कराने वालों से
तुमने घर की तुलसी को विषबेल बताया, शर्म करो
भगवा का काले झंडे से मेल बताया, शर्म करो
कवि गौरव चौहान कहे, ये सोच कहाँ से पाले हैं,य
लगता है इनके दिमाग में कीड़े पड़ने वाले है
ऐ गुलाम, मत मिटटी फेंको आज दिये की बाती पर
वर्ना भगवा लहराएगा, मियां तुम्हारी छाती पर
—–कवि गौरव चौहान