संघ पर कांग्रेस के नये हमले खतरनाक
विगत सप्ताह के आखिरी दिनों में कई महत्वपूर्ण सम्मेलनों और कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।जिसमें सर्वाधिक चर्चा का विषय रहा राजस्थान के नागौर में आयोजित संघ की वार्षिक प्रतिनिधि सभा की अखिल भारतीय बैठक और फिर दिल्ली में आयोजित जमीयते-उलेमा का सम्मेलन । नागौर में संघ की बैठक का अपना एक अलग एजेंडा था लेकिन सर्वाधिक गर्मागर्म बयान आया है दिल्ली में आयोजित जमीयत उलमा-ए हिंद में। यहां पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद गुलाम नबी आजाद ने संघ की तुलना आईएसआईएस से कर दी है।
गुलाम नबी आजाद के बयान के बाद राजनैतिक गलियारें में इसकी तीव्र प्रतिक्रिया आनी थी ही। उधर जब संघ ने अपनी ड्रेस को बदलने का निर्णय लिया तब भी इन तथाकथित सेकुलर दलों को संघ को बदनाम और अपानित करने का एक मौका और मिल गया। बिहार में महागठबंधन की जीत से अतिउत्साहित व अपने परम अहंकार में डूबे लालू यादव ने कहाकि वह संघ को एक बार फिर हाफ पैंट में पहुँचा कर ही दम लेंगे। कांग्रेसी महासचिव दिग्विजय सिंह ने बयान दिया है कि संघ ड्रेस नहीं अपनी विचारधारा को बदल डाले।
अब प्रश्न यह उठता है कि कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद ने जमीयत उलेमा ए हिंद के सम्मेलन में जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग किया है क्या वह सोनिया-राहुल की भाषा है या फिर उनकी अपनी स्वयं की है? अभी तक कांग्रेस पार्टी इस विषय पर अपना रूख स्पष्ट नहीं कर पायी है। यह बात तो बिलकुल सत्य प्रतीत हो रही हैं कि गुलाम नबी आजाद ने संघ की बढ़ती लोकप्रियता से भयभीत होकर और मुस्लिमों में संघ के प्रति बढ़ते आकर्षण से घबराकर मुस्लिम समाज में संघ के प्रति एक बार फिर अविश्वास और भय का वातावरण पैदा करने का प्रयास किया है।
उक्त सम्मेलन में शामिल सभी प्रतिनिधियों ने एक स्वर में जेएनयू में देशद्रोही नारे लगाने वाले कन्हैया कुमार का खुलकर समर्थन किया और यह भी कहा गया कि मोदी सरकार में दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और ईसाइयों की अनदेखी की जा रही है। आज मोदी विरोध के नाम पर केवल यही राग पूरे देश में गाया जा रहा है और एक प्रकार से कन्हैया कुमार की आड़ में भी सभी देशद्रोही अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने के लिए एक हो गये हैं।
गुलाम नबी आजाद का बयान बेहद गंभीर व आपत्तिजनक व समाज में तनाव का वातावरण उत्पन्न करने वाला है। अगर यह बयान सोनिया – राहुल का नहीं है तो फिर क्या कांग्रेस के अंदरखाने में एक नया सत्ता प्रतिष्ठान पैदा होने की शुरूआत हो गयी है जो कि वंशवादी राजनीति से इतर अपना एक नया मार्ग चुन सकती है? उधर भाजपा ने भी यह मामला संसद के अंदर उठाने का फैसला कर लिया है जिससे कांग्रेस बैकफुट पर अवश्य आयेगी।
आजाद के बयान के बाद संघ की ओर से यह बयान आया है कि आजाद का बयान उनकी अज्ञानता के कारण आया है। यह बात बिलकुल सही भी है क्योंकि अभी तक का जो इतिहास रहा है उसमें कांग्रेस के किसी भी पूर्व व वर्तमान नेता ने संघ के प्रति इतनी अधिक दुर्भावना वाला बयान नहीं दिया है। यह एक प्रकार से संघ की मानहानि करने वाला बयान है। गुलाम नबी आजाद और लालू प्रसाद जैसे जातिवादी और मुस्लिम तुष्टीकरण करके अपनी राजनीति चमकाने व उसको जीवित रखने वाले नेताओं को संघ की शाखाओं में जाने और उसे समझने की महती आवश्यकता है।
संघ के विषय में महात्मा गांधी, डा. जाकिर हुसैन,डा. बाबा साहेब अम्बेडकर, श्री जयप्रकाश नारायण, परमपावन दलाईलामा, पूर्व प्रधानमत्रीे नेहरू जी, सरदार पटेल और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जैसी महान हस्तियों ने अपने विचार व्यक्त किये हैं। मोहनदास कर्मचंद गांधी ने 16 सितम्बर 1947 को दिल्ली की भंगी कालोनी में भ्रमण करने के बाद बयान दिया था कि “कुछ वर्ष पहले जब संघ के संस्थापक जीवित थे आपके शिविर में गया था। वहां पर आपके अनुशासन, अस्पृश्यता का पूर्णरूप से अभाव था।”
गांधी जी वहां के अनुशासन, अस्पृश्यता के पूर्णरूप से अभाव और कठोर सादगीपूर्ण जीवन देखकर काफी प्रभावित हुए थे। उन्होंने कहा था कि “सेवा और स्वार्थ त्याग के उच्च आदर्श से प्रेरित कोई भी संगठन दिन प्रतिदिन अधिक शक्तिवान हुए बिना रहीं रहेगा।” महात्मा गांधी की यह बात आज अक्षरशः सत्य साबित हो रही हैं। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश का सबसे विशाल वटवृक्ष बन चुका है। संघ में आईएस की विचारधारा नहीं पनपती है। संघ की शाखाओं में व्यक्ति का निर्माण किया जाता है।
आज देश के विरोधी दलों के नेता संघ के खिलाफ जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं वह वैमनस्यता से परिपूर्ण है। इन दलों को यह आभास हो गया है कि देश व विभिन्न प्रांतों में आज भारतीय जनता पार्टी की जो सरकारें विराजमान हैं उसके पीछे संघ का हाथ है। संघ कार्यों की विशेषता उसके सेवा कार्य हैं।
एक समय लोकनायक जयप्रकाश नारायण घोर समाजवादी और संघ के घोर विरोधी थे। 1965- 66 में बिहार में भयंकर अकाल पड़ा था । पूरे राहत कार्य कार्य के लिये जे. पी. प्रमुख थे। संघ वालों को वे कतई उस काम में शामिल नहीं करना चाहते थे किंतु हनुमान प्रसाद पोददार के कहने पर यह काम उन्होंने संघ को सौंप दिया। कुछ दिनों के बाद निरीक्षण के दौरान उन्होनें संघ के स्वयंसेवकों से हिसाब-किताब पूछा जिसका सही जवाब संघ के स्वयंसेवकों ने दिया। जब जे.पी. ने संघ के स्वयंसेवकों से कुछ पूछा तो उन्होनें जवाब दिया कि “आपदाग्रस्त लोगों के लिए दिये जाने वाले धन में से एक पैसा भी स्वयं के लिए उपयोग करना हम पाप मानते हैं।” स्वयंसेवकों का उत्तर सुनने के बाद जे.पी. आश्चर्यचकित रह गये।
संघ में सामाजिक समरसता का पाठ पढाया जाता है। संघ में मानवता का पाठ पढ़ाया जाता है। आज पूरे देशभर में काफी विशाल स्तर पर संघ का काम चल रहा है। लालू प्रसाद जैसे नेता आज एक बार फिर संघ को हाफपैंट में पहुँचाने का दिवास्वप्न देख रहे हैं। लालू को अभी संगठन की शक्ति का अंदाजा नहीं हैं।
आजादी के बाद से अब तक संघ पर पता नहीं कितनी बार और कितने प्रकार से हमले हो चुके हैं। लेकिन संघ का वटवृक्ष फलता-फूलता जा रहा है। गुलाम नबी आजाद और लालू प्रसाद यादव को उनकी राजनीति मुबारक।
— मृत्युंजय दीक्षित