राजनीति

युवा-शक्ति का उपयोग कितना उचित , कितना अनुचित ?

पहाडी नदियों के तीव्र वेग की तुलना जीवन में जवानी के उदात्त प्रवाह से की जाती रही है | दूसरे शब्दों में समान कही जा सकती है | नदी के नियंत्रित तीव्र वेग से विद्युत् ऊर्जा का निर्माण हो या अनियंत्रित बाढ़ की विभीषिका से विध्वंसात्मक जन-धन के क्षति की स्वीकारोक्त्ति | सब कुछ आदमी के स्वचिंतन पर निर्भर है | परन्तु, इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि काई पर पाँव भी औसतन अधिक फिसलते हैं |

जे० एन० यु० की घटना हो या आरक्षण के आन्दोलन से उत्पन्न देश में अराजकता की स्थिति से उत्पन्न सत्ता परिवर्तन के ख़्वाब या षड्यंत्र | इस देश ने इसके पूर्व भी जे० पी० आन्दोलन से सत्ता परिवर्तन का दौर देखा है |

युवाओं के जोश और राष्ट्रहितैषी नेताओं के निर्णायक चिन्तन साथ-साथ चले तो देश ने आजादी पाई थी | दुर्भाग्यवश, यहाँ भी स्वार्थ और पदलोलुपता इतनी हावी रही कि देश का विभाजन तक हो गया | जो वर्तमान में दुश्मन देश के रूप में परिलक्षित ही नहीं हो रहा बल्कि कई युद्ध भी लड चुका | यही मंशा तो थी उन सत्ताधीशों की, जो इस देश को पांच सौ पैंसठ रियासतों में बांटना चाहते थे और इसी के निमित्त ही अपने मनचाहे व्यक्ति को सत्ता सौंपने का निर्णय लिया जबकि, महात्मा गांधी, बिनोबा, पटेल सरीखे कई राष्ट्र भक्तों के विरोधी स्वर भी गूंजे | पर, हुआ वही जो होना था अनैतिकता के आगे नैतिकता की हार | जिसके प्रमाण स्वरूप गांधीजी का प्रधानमंत्री के शपथ-ग्रहण समारोह में अनुपस्थित रहना | दुर्भाग्यवश, पदलोलुपता हावी रही और देश विभाजित हो गया|

दूसरी घटना सत्ता-परिवर्तन की जे० पी० आन्दोलन के रूप में आपातकाल के दौरान घटित हुई | जब एक देशव्यापी आन्दोलन में युवाओं का आक्रोशित रूप देखने को मिला और वर्तमान सत्ता परिवर्तित हो गयी |

यहाँ तक तो बात देश के भीतर की रही, जो क्षम्य कही जा सकती है | वर्तमान में देश की राजधानी से निकली राष्ट्रद्रोह की चिंगारी और मात्र सत्ता प्राप्ति के निमित्त रचित षड्यंत्र के रूप में स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है | स्वार्थवश अराजकता की स्थिति पैदा की जा रही है | राष्ट्र निर्माण के बजाय राष्ट्रद्रोह तक की भावना से भी परहेज नहीं | कहीं जाति के नाम पर आरक्षण की आग तो कहीं स्त्री-पुरुष के समान अधिकार का अतार्किक चिन्तन के फलस्वरूप अधिक संवैधानिक अधिकार, और हद तो तब हो जाती है जब स्वार्थजन्य राष्ट्रप्रेम के नाम पर राष्ट्रद्रोह का ताना-बाना | स्वार्थजन्य विकृत मानसिकता के आक्रोश में व्यक्तिगत विद्वेषजन्य कृत्य और राष्ट्रीय सम्पत्ति का सर्वनाश | मानवता के विरुद्ध खोखली मानसिकता के वीभत्स रूप का नंगा नमूना, जलापूर्ति का बाधित किया जाना |

वैसे भी जिस देश की संस्कृति में अभ्यागत अतिथियों के स्वागत सम्मान में जलयुक्त पात्र प्रस्तुत करने की परम्परा रही हो, वहां जलापूर्ति बाधित करना क्या विकसित अमानवीयता को नहीं दर्शाता ? स्वार्थजन्य आन्दोलन के नाम पर जनसेवा के बजाय जनसेवा को बाधित करने का कुकृत्य सिर्फ और सिर्फ सत्ता को अस्थिर करने के साथ, सत्ताप्राप्ति के लक्ष्य के अलावे और क्या ?

जिस युवाशक्ति का प्रयोग देश की आजादी और सर्वजन हितार्थ सत्ता परिवर्तन के निमित्त किया गया उसी युवाशक्ति को बेरोजगारी और अपराधिक दुनियाँ में धकेलने का प्रयास जारी रहा और आंदोलनों से जन्मे तथाकथित नेता सत्तासुख भोगते रहे | वहीं वर्तमान में युवाशक्ति को राजनैतिक चिन्तन के आधार पर विभाजित कर बरगलाते हुए देश की अंतर्राष्ट्रीय छवि को मटियामेट करने का प्रयास क्या स्त्तालोलुपों की चाल नहीं कही जा सकती |

वर्तमान में परिवर्तित सत्ता द्वारा पूर्ववर्ती सरकार के कुकृत्यों के काले चिट्ठों का खोला जाना भी एक महत्त्वपूर्ण कारण माना जा सकता है | खासकर, वर्तमान आंदोलनों के परिपेक्ष्य में | वर्तमान सत्ता के लिए सत्ता काँटों भरा ताज ही तो है | अपनों से निबटना तो आसान है मगर, घर के गद्दारों से निबटना औसतन कठिन |

यूँ तो इस देश में आंदोलनों का दौर सदा ही रहा, मगर पूर्व के दो प्रमुख आंदोलनों पर सरसरी निगाह डाली जाय तो स्पष्ट हो जाता है – जहाँ एक का विशाल लक्ष्य आजादी रहा वहीं दूसरा निरंकुशता के विरुद्ध | पर कोई भी आन्दोलन नेतृत्त्वविहीन नहीं था जबकि, वर्तमान का आरक्षण आन्दोलन नेतृत्त्वविहीन | लगभग सारे के सारे तथाकथित स्वार्थी नेता नेपथ्य से ही सत्ता प्राप्ति के निमित्त निर्णीत आन्दोलन के पक्षधर रहे साथ ही आमजन के सामने स्वयं को अंजान और निर्दोष बताने पर तुले रहे |

इन परिस्थितियों में अगर देश को विकास के पथ पर अग्रसर करना है तो वर्तमान सत्ता को निर्णायक भूमिका में आरक्षण का आधार आर्थिक करना चाहिए | ताकि आरक्षण की आग में अपनी रोटी सेंकनेवाले और तथाकथित चंद लोगों द्वारा इस सुविधा के नाम पर विकसित लाभान्वितों को वंचित किया जा सके | सत्ता मोह से उपर उठकर नीति-नियन्ताओं को सख्ती भरे कदम उठाने चाहिए | आग को बुझाने हेतु पानी का प्रयोग आवश्यक है, बेशक पानी ठंढा हो या गरम | पानी कभी नहीं छोड़ता अपना धरम |

— बेबाक बिहारी “श्याम”

श्याम स्नेही

श्री श्याम "स्नेही" हिंदी के कई सम्मानों से विभुषित हो चुके हैं| हरियाणा हिंदी सेवी सम्मान और फणीश्वर नाथ रेणु सम्मान के अलावे और भी कई सम्मानों के अलावे देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति से प्रतिष्ठा अर्जित की है अध्यात्म, राष्ट्र प्रेम और वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों पर इनकी पैनी नजर से लेख और कई कविताएँ प्रकाशित हो चुकी है | 502/से-10ए, गुरुग्राम, हरियाणा। 9990745436 ईमेल[email protected]