क्यूँ सदा यूँ फतह की ही सोचते हो |
क्यूँ सदा यूँ फतह की ही सोचते हो |
बस हमेशा सतह की ही सोचते हो ||१
प्यार मुहब्बत भी होता कुछ जहाँ में |
बेवजह क्यूँ कलह की ही सोचते हो ||२
सबको ले कर चलो साथ दुनियां में |
क्यूँ अपनी जगह की ही सोचते हो| ||३
गुजारिशे मन्नते रूठे को मनाने की |
खुलेगी कब गिरह की ही सोचते हो ||४
दिल दे बैठे हम निगाहों में ही फिर |
बेवजह क्यूँ वजह की ही सोचते हो || ५
“दिनेश “