गीत/नवगीत

गीत : एक ‘महान्’ नेता की ओर से

कुछ मित्रों को शिकायत है कि आजकल मैं बहुत सांप्रदायिक हो गया हूँ। तो हमारे देश के एक तथाकथित सेक्यूलर नेता जी के ताजा बयान को आधार बनाकर पेश है एक व्यंग्य :-

सुर्खी बनेगी अखबारों की जब भी मैं मुँह खोलूँगा
कुछ भी बोलूँगा भारत माता की जय ना बोलूँगा

एक जेब में माल पड़ा है अल्पसंख्यक वोटों का
दूसरी जेब में भरा खज़ाना दो नंबर के नोटों का
सियासत की मंडी में जिसको जैसे चाहूँ तौलूँगा
कुछ भी बोलूँगा भारत माता की जय ना बोलूँगा

अमन-चैन की बात मुझे तो फूटी आँख नहीं भाती
मेरे देश की शांति मुझको बिल्कुल रास नहीं आती
जितना हो पाएगा ज़हर इसकी फिज़ा में घोलूँगा
कुछ भी बोलूँगा भारत माता की जय ना बोलूँगा

मेरे खिलाफ बोलने वालों को चुप करवा सकता हूँ
मैं भाई को भाई के हाथों से मरवा सकता हूँ
नदी बहा कर खून की उसमें अपना चेहरा धो लूँगा
कुछ भी बोलूँगा भारत माता की जय ना बोलूँगा

कुछ ना कर पाएँगे थोड़ा चीखेंगे, चिल्लाएँगे
देभभक्त अपनों के हाथों से ही मुँह की खाएँगे
फंस गया तो मानव अधिकारों का रोना रो लूँगा
कुछ भी बोलूँगा भारत माता की जय ना बोलूँगा

एक महान नेता की ओर से

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]

One thought on “गीत : एक ‘महान्’ नेता की ओर से

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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