सखी
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मापनी – २१२ २१२ २१२
पदांत – अन सखी
सामंत – अयी
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प्यार मे सज गयी बन सखी/
गीत बनकर सजी तन सखी /१
चाँद दिखता रहा नभ धरा/
मीत बन कर कही मन सखी/२
आश् कैसे बनी रवि शमा /
गीत माला सजी मन सखी /३
छा रहा आज बादल गगन /
चाह चाहत दिखी बन सखी/४
राज कहने लगी जिंदगी
प्रेम बनकर सजी तन सखी/५
प्यास दिल मे उठी आज क्यों?
देखि रजनी थकी जन सखी /६
राह कितना कठिन आज है ,
डोर उनकी खिची मन सखी /७
दूर उनका सहन अब नहीं
सांस रुकती नही तन सखी /८
बीतते अब नहीं रात दिन ,
प्यास छूने लगी मन सखी/९
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राजकिशोर मिश्र ‘राज’
सर्वाधिकार सुरक्षित
सुन्दर गीतिका !
सुन्दर गीतिका !
आदरणीय जी आपके आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए तहेदिल से आभार एवम् नमन