संस्मरण
सुदूर जंगलों में ले जाते थे, जहाँ पर बच्चे पेड़ों की विभिन्न प्रकार की लकड़ियों से तरह-तरह के पशु-पक्षी की आकृति बनाते थे, वहाँ से तरह-तरह की फूल-पत्तियाँ ला के ‘हरबेरियम’ सजाते थे और उत्सुकतापूर्वक बधाई कार्ड पर चित्ताकर्षक डिजाइन बनाकर रचनात्मक क्षमता का परिचय देते थे. वार्षिक परीक्षा में इन प्रोजेक्ट के अंक भी शिक्षक वर्ग देते थे. कभी स्ट्राबेरियों के मौसम में खेतों में ले जाते थे. इनकी पौध जमीन को छूती हुईं लाल-गुलाबी स्ट्राबेरियाँ बिजली की लड़ियों-सी धरा को जगमग करती हुई प्रतीत होती थी. कभी ऐसा बिम्ब दिखाई देता जैसा की धरा ने हरे-लाल की फुलकारी कढ़ाई की ओढ़नी ओढ़ी हो.
अतः सभी बच्चे इस दिन का बड़ी बेचैनी से इंतजार करते थे. घूमने को तो मिलता था, साथ ही प्राकृतिक धरोहर का लाभ उठाते थे. जिससे उनका सृजनात्मक, मानसिक, भावनात्मक औए बौद्धिक विकास होता था .
विद्यालय में शैतान छात्रों की काली सूची में मयंक, मानव, रीता. गीता, मनोज का नाम था, इसलिए इस बा र’प्रकृति का प्रयोगात्मक’ सैर में शामिल नहीं किया और सजा के तौर पर लिखित गृहकार्य और प्रोजेक्ट्स भी ज्यादा दे दिए. इनको मन ही मन बहुत बुरा लगा. ये पाँचों छात्र घूमने, आनंद, मस्ती, मनोरंजन से वंचित रह गए.
वापस आकर जब बच्चे प्रकृति के नजारों, सौंदर्य, पर्यावरण, पेड़ों की जानकारी, कहानी, रोचक बातें बताते तो उन्हें बहुत अच्छा लगता व उत्सुकता होती थी इनके साथ जाने की.
अगले महीने फिर बच्चों को ‘दैनिक कार्ड’ मिला तो प्रार्थना सभा में सभी बच्चों की कार्ड की जांच की गई. प्राचार्य ने इन पाँचों बच्चों को अपने पास बुलाया, उनका दैनिक कार्ड देखा तो इन बच्चों के नहीं में निशान थे. तब प्राचार्य ने उन्हें डांटा और सात दिनों के लिए स्कूल से निलम्बित कर दिया. सबके समाने इन बच्चों को अपना अपमान लगा. शर्म के मारे उन्होंनें अपनी गर्दन झुका ली.
उसी क्षण उनकी चेतना जागी और उनके भावों के उतार चढ़ाव में परिवर्तन आया. उन्होंने प्राचार्य से माफी मांगते हुए कहा-हम भी अच्छे बच्चे बनेंगे. आज से हम आपको शिकायत करने का कोई मौका नहीं देगें, हम सबका कहना मानेंगे. दैनिक कार्ड की सभी बातें हाँ में स्वीकारेंगे. हम अपनी संकल्प शक्ति के द्वारा सदाचार का अभ्यास करेंगे. कहावत भी है ‘करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान. ‘ समाधान की रोशनी ने सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण किया. जिससे खराब काम, अवगुणों का अँधेरा उनके जीवन से दूर भागा. संकल्प साधना से उन्हें नए व्यक्तित्त्व को बल मिला.
फिर समय व्यतीत हुआ, अगला महीना आया. प्रार्थना सभा में सभी बच्चों के ‘दैनिक कार्ड’ देखे तो उन पाँचों छात्रों के कार्ड में ‘हाँ’ का निशान था, प्यार से प्राचार्य ने उन्हें अपने पास बुलाया, उनके सिर पर प्यार से हाथ फेरा , मीठे वचनों व उदारता से उनकी प्रशंसा की. इन बच्चों में इतना बड़ा बदलाब, सुधार आया था जैसे अंगुलीमाल का बौद्ध के सान्निध्य से. अब वे झूठ नहीं बोलते थे. , कटु नहीं बोलते , निंदा नहीं करते और सब का कहना मानते थे. सभी शिक्षकगण ने उनके व्यवहार में आए परिवर्तन की तारीफ़ की और उन्हें’प्रकृति के प्रयोगात्मक शिक्षा’में जाने की अनुमति दे दी . उनके सम्मान में प्राचार्य ने मैडल भी दिया और कक्षा का मोनिटर भी बना दिया.
विद्यालय की छुट्टी होने पर चारों ओर इन बच्चों की चर्चें हो रहे थे. अभिभावकों, माता-पिता व शुभचिंतकों को अध्यापकों, प्राचार्य पर गर्व हो रहा था . इन बच्चों के माता-पिता ने उनका आभार व्यक्त किया, धन्यवाद दिया. नेकी-प्रयास से सभी को सच्चा सुख मिलता है. कहने का तात्पर्य यह है कि अगर बार-बार पानी को मथे तो उसमें बिजली पैदा हो जाती है और गरम को दूध को एक गिलास से दूसरे गिलास में डाल के झाग बनाएँ तो उसमें प्राणवायु और विद्युत शक्ति बढ़ जाती है. ऐसे ही संकल्प शक्ति से संजीवन क्षमताएं बढ़ जाती हैं. अगर दण्ड, प्यार
और प्रोत्साहन की प्रभावी नीति से काम लें तो सफलता मिलती है. नई ऊर्जा, प्रेम, विधयाक भावों की निर्झरणी उनमें बह रही थी. नन्दन वन से महकते हुए वे वनस्पति-सृष्टि, पर्यावरण प्रेम, संरक्षण का संदेश दे रहें थे.