उड़ा जा रहा है
समय,
पुनः वापिस न आने के लिए
उड़ा जा रहा है
आदमी,
मनचाही वस्तु को
बार-बार पाने की चाहत में
उड़ा जा रहा है.
समय,
भूतकाल से नाता तोड़के
उड़ा जा रहा है
आदमी जानते हुए भी कि
भूतकाल को भुलाना
उसके हित में है
भूतकाल से नाता जोड़के
उड़ा जा रहा है.
समय,
अपनी नियमित-निर्धारित गति से
उड़ा जा रहा है
आदमी,
कभी दैववश
कभी आलस्य-प्रमादवश
असंयमित गति से
उड़ा जा रहा है.
समय,
स्वभावतः
भविष्य-सृजन हेतु
उड़ा जा रहा है
आदमी,
कभी परिस्थितिवश
कभी आकांक्षाओं-अभिलाषाओं के वशीभूत
स्वनियोजित
भविष्य-सृजन हेतु
उड़ा जा रहा है.
समय,
तो बस जाने-अनजाने
उसे न चलने का पता है
न उड़ने का
उड़ा जा रहा है
आदमी,
चलने और उड़ने के
अंतर को जानते हुए भी
उड़ने के खतरों से
वाकिफ होते हुए भी
उड़ा जा रहा है,
उड़ा जा रहा है,
उड़ा जा रहा है.
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बहुत अच्छी कविता बहिन जी !
प्रिय विजय भाई जी, सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
लीला बहन , कविता बहुत ही अच्छी लगी ,ठीक ही तो है समय उड़ा जा रहा है ,आगे ही आगे, लेकिन इंसान भूतकाल के अंत तक जाना चाहता है ,यहाँ तक उस की याद उसे ले जाए .
प्रिय गुरमैल भाई जी, तभी तो हमें इतनी नायाब मेरी कहानी पढ़ने को मिल रही है. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
आदरणीय लीला तिवानी जी बहुत बढ़िया कविता लिखी है आप ने . बधाई आप को इस हेतु.
प्रिय ओमप्रकाश भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कविता अच्छी लगी. आपको भी बधाई के लिए बधाई (हमारे यहां प्रतिफल का यही रिवाज़ है).
स्वागत है आप का आदरनीय लीला तिवानी जी
प्रिय मनमोहन भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कविता अच्छी लगी. बहुत समय पहले यह किसी धुन में लिखी गई थी, कल कवि सम्मेलन में जाने के लिए कविता का चुनाव करते-करते हाथ लग गई, तो आपका आशीर्वाद मिल गया. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
नमस्ते बहिन ही। कविता बहुत अच्छी लगी। कविता में समय और आदमी की बहुत अच्छी तुलना की गई है। सादर।
प्रिय मनमोहन भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कविता अच्छी लगी. बहुत समय पहले यह किसी धुन में लिखी गई थी, कल कवि सम्मेलन में जाने के लिए कविता का चुनाव करते-करते हाथ लग गई, तो आपका आशीर्वाद मिल गया. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.