उम्मींद करता हूँ ….
उम्मींद करता हूँ ………………………………..
उम्मींद करता हूँ
हर वक्त तरसता हूँ
जिन्दगी के पैमाने है
उन्हीं से गुजरता हूँ।
फूल भी देखता हूँ
नजदीक महसुस करता हूँ
उन्हें छू नहीं सकता
अपने आप को कौसता हूँ।
हर लहर पर रूकता हूँ
हर मार्ग को पहचानता हूँ
मंजिलों की तलाश में
कई कदम चलता हूँ।
हौसलें बुलन्द करता हूँ
फिर से निकल पड़ता हूँ
सुनसान विरान में जाकर
अपने दूःखों को दूर करता हूँ।
कश्ती को देखता हूँ
फिर सोचता हूँ
सबका अपना किनारा है
मैं ही क्यों भटकता हूँ।
वाह नितिन जी !
बेहद खुबसुरत रचना