ग़ज़ल
रात से ख़ूब आशनाई की।
बात की आपकी जुदाई की।
और मजबूरियाँ रहीं होंगी,
बात मुमकिन न बेवफ़ाई की।
खूबियाँ कोहिनूर वाली हैं।
बस ज़रूरत जरा घिसाई की।
प्यार तू किस तरह निभायेगा,
फ़िक्र करता है जगहँसाई की।
ओढ़ जो सो गया थकन अपनी,
क्या ज़रूरत उसे रजाई की।
-प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रसून’
फतेहपुर उ.प्र
वाह वाह !
ओढ़ जो सो गया थकन अपनी,
क्या ज़रूरत उसे रजाई की। वाह क्या बोल हैं ,ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी .
आदरणीय प्रसून जी आप ने बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है. बधाई आप को .
बढियां!!
बढियां!!