ताटक छन्द
ताटक छन्द (१६+१४=30 अन्त में २२२)
मनोरम दृश्य बनाकर के, बसंत ऋतु अब आई है।
चहुओर फूलों की वर्षा कर,सब प्रेममय बनाई है।
फूलों का रस ले रतिमय कर, प्रेम सुधा बरसाई है।
रंग बिरंगी फूल खिला कर, प्रेम कि जोति जलाई है।
———————————————-
धरती पर हरियाली लाकर, सबके दिल पर छाईं है।
हर मौसम से सुन्दर बनकर,बसंत ऋतु अब आईं है।
मधुमास में मकरन्द बनकर, प्रीत यहाँ फैलाईं है।
और नवेली दुल्हन बन पित, वस्त्र पहन कर आई है।
_____________________________रमेश कुमार सिंह
________________________________10-02-2015