धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

हम त्यौहार क्यों न मनायें?

थक गया हूँ सुन-सुनकर कि ये त्योहार ना मनाओ, वो त्योहार ना मनाओ। दीवाली में पटाखे मत चलाओ, प्रदूषण होता है। होली मत खेलो पानी व्यर्थ होता है। श्रावण में महादेव को दूध मत चढ़ाओ, किसी गरीब को दे दो। ये सब बातें सुनने में बड़ी अच्छी लगती हैं, ऊँचे आदर्शों वाली, बुद्धिजीवी किस्म की। लेकिन मुझ अल्पबुद्धि को ये समझ नहीं आता कि त्योहार मनाने वाला पैसा ही क्यों दान करना? अगर पानी बचाना ही है तो होली के दिन काम आने वाला पानी ही क्यों?

आप मुश्किल से चार चम्मच दूध चढ़ाते हैं महादेव को वो भी इसलिए कि उन्होंने इस सृष्टि को बचाने के लिए विषपान किया था। वो चार चम्मच दूध दान करने की बजाय आप स्वयं जो एक गिलास दूध प्रतिदिन पीते हैं वो किसी गरीब को दान क्यों नहीं करते? मेरे विचार से आपने तो प्रतिदिन दूध ग्रहण करने जैसा कोई काम नहीं किया।

होली में एक दिन पानी बचाने की जगह आप रोज पानी क्यों नहीं बचाते? एक लोटा पानी यदि प्रतिदिन बचाएँगे तो 365 लोटे वर्ष भर में बचेंगे और आप चाहेंगे तो भी शायद 365 लोटे पानी होली के दिन प्रयोग ना कर पाएंगे।

दीपावली पर पटाखे ना चलाकर वायुमंडल को प्रदूषित होने से बचाने की मूल्यवान सलाह देने वाले कई बुद्धिजीवियों के पास घर के हर सदस्य के लिए अलग-अलग कारें हैं। पूरा वर्ष आप प्रदूषण फैलाइए जितना भी कोई दिक्कत नहीं लेकिन दीपावली पर अगर पटाखे चलाएंगे तो ओजोन पर्त में अवश्य छेद हो जाएगा। हाथ में प्लास्टिक की मिनरल वाटर की बोतल पकड़ कर पर्यावरण पर भाषण देना कुछ हास्यास्पद सा लगता है।

मैं पूरी विनम्रता से कहना चाहता हूँ कि मैं सामाजिक कल्याण का कार्य अवश्य करूँगा लेकिन त्योहार मनाने वाले पैसों से नहीं। मैं अपना त्योहार पूरी धूमधाम से मनाऊँगा। अगर मुझे दूध का दान करना होगा तो मैं अपने हिस्से में से आधा गिलास प्रतिदिन दान करूँगा, श्रावण मास की प्रतीक्षा नहीं करूँगा महादेव के हिस्से का दूध दान करने के लिए। होली मन भर के खेलूँगा मगर पूरा साल थोड़ा-थोड़ा पानी बचाऊँगा। दीपावली पर खूब पटाखे चलाऊँगा उसके बदले एक सप्ताह या दस दिन या पंद्रह दिन जितना भी आवश्यक हो अपने वाहन का उपयोग नहीं करूँगा सार्वजनिक वाहन का ही उपयोग करूँगा।

अगर आप भलाई करना ही चाहते हैं तो उसे प्रतिदिन की आदत बनाइए, पूरे वर्ष किसी खास दिन की प्रतीक्षा मत कीजिए भला काम करने के लिए। यदि मेरी बातों से किसी की भावनाएँ आहत हुई हों तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ।

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]

One thought on “हम त्यौहार क्यों न मनायें?

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख. मैं पूरी तरह सहमत हूँ.
    हिन्दुओं के त्यौहारों पर उपदेश झाड़ने वाले लोग बकरीद के दिन लाखों पशुओं की हत्या होने और उनका खून सड़कों पर बहने पर कुछ नहीं बोलते. यह दोमुंहापन है.

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