ले रंग-गुलाबी उड़ा रहे हैं इधर….॥
मौज मस्ती का गूँजे तराना इधर।
लोग बना रहे है अफसाना इधर।
उमंग को रंग में घोल करके यहाँ,
मना रहे लोग प्रीत पुराना इधर।
ले रंग-गुलाबी उड़ा रहे हैं इधर…..॥
आपस में गले मिल रहे हैं इधर।
दूर शिकवा गिला कर रहे हैं इधर।
यहाँ फागुन में होली मनाते हुए,
प्रेम एक-दूजे पर छिड़कते इधर।
ले रंग-गुलाबी उड़ा रहे हैं इधर….॥
पटाखों की आवाज़ आ रही है।
अब खुशियों की बारात आ गई है।
लोग फागुन में फगुआ मनाते हुए,
इक्कठा होकर आ रहे हैं इधर।
ले रंग-गुलाबी उड़ा रहे हैं इधर….॥
लेाग पैग को पैग से लड़ाते हुए।
एक-दूजे को नशा में डुबाते हुए।
ख्वाबों की दुनिया में उड़ते हुए,
रंग-रंगीन दुनिया बन गई है इधर।
ले रंग-गुलाबी उड़ा रहे हैं इधर….॥
________________रमेश कुमार सिंह