ग़ज़ल
माँगना हक है हमारा क्या शर्म की बात है,
मानना ना मानना तो उस खुदा की बात है
हमने कहा ये जिंदगी अहद-ए-वफा का नाम है,
हंस के उन्होंने कहा ये किस जहां की बात है
राह-ए-मुहब्बत में फना हम हो गए तो क्या हुआ,
इब्तिदा से थी खबर ये इंतिहा की बात है
तुम समाए हो मेरी गज़लों में यूँ कि जो सुने,
पूछता है मुझसे ये किस दिलरूबा की बात है
दास्तां सुनकर मेरी माना तुम्हें आया मज़ा,
पर मैं दोबारा सुनाऊँ ये कहां की बात है
मेरी खामोशी को समझा तूने कमजोरी मेरी,
फैसला होकर रहेगा अब अना की बात है
— भरत मल्होत्रा
बढ़िया ग़ज़ल !