एक पन्छी
एक पंन्छी थी जंगल में नादान सी
हसती गाती चहकती सुबह शाम थी
ना था बन्धन कोई ना कोई शिकायत रही
उडते उडते अचानक कही रूक गयी
भूल जीवन की सबसे बडी उसने की
उसपर जालिम शिकारी की नजरें पडी
जो बाधना चाहता था प्रेम के जाल में
पन्छी फसती गई और कसती गई उसके मोहपाश में
जब तलक जरिया थी उसकी खुशियों का वो
तब तलक प्रेम सागर लुटाता गया
इक दिन अचानक हुआ कुछ अलग
नेह पन्छी से उसका कम होने लगा
जब पन्छी फसी एक नयी जाल में
सारी कसमो और वादों को बैठा वो भूल
उसको लगने लगी पन्छी जैसे शूल
झूठ पर झूठ का फन्दा बुनता गया
नश्तर धोखे का उसको चुभाता गया
जब सहन ना हुआ पन्छी लाचार से
और उसने बगावत की आवाज की
शिकारी तो आखिर शिकारी ही था
मिल गयी एक पन्छी नई थी उसे
अब उसे नए पन्छी से प्यार था
उसने सोचा हटादो पुराने को अब
कल बुना था जो फन्दा उस सय्याद ने
पन्छी को डालकर हार सा वो इतराने लगा
अब उसको कसना शुरु कर दिया
कसता गया और कसता गया
देखकर छटपटाहट को पन्छी की वो
हसता गया और हसता गया
अनुपमा दीक्षित मयंक