गीत – दिन तो अब बीते
अच्छा हार मान ली हमने लो तुम ही जीते.
किसी तरह से मनमुटाव के दिन तो अब बीते.
किसने क्या ग़लती की, कोई
बहस नहीं इस पर.
तुमको जब माना है अपना
दोष मढ़ें किस पर.
कब तक अश्क बहाती आँखें कब तक हम पीते.
किसी तरह से मनमुटाव के दिन तो अब बीते.
तुमसे जितना दूर हुये हम
ख़ुद से दूर हुये.
कुछ न कह सके कुछ न सुन सके
यों मजबूर हुये.
रातें हुई हमारी सूनी दिन रीते-रीते.
किसी तरह से मनमुटाव के दिन तो अब बीते.
कभी तुम्हारी कभी हमारी
होगी कमी कहीं.
जग में ऐसा कौन कि जिसमें
कोई कमी नहीं.
कहाँ-कहाँ तक कमियों वाली चादर हम सीते.
किसी तरह से मनमुटाव के दिन तो अब बीते.
— डाॅ. कमलेश द्विवेदी