कुण्डली/छंद

आल्ह छ्न्द

आल्ह छ्न्द===== १६+१५=३१ चरणांत गाल -२१

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फागुन पिया गये परदेश, —-भेजे कोई ना संदेश /
जियरा मोर झूमि के बोले – -आयि नाहि काहे संदेश/
चैत सुलग लकड़ी जस भादों-, वैसा हाल दिखावत राज/
चुवत पसीना वैशाखी का- जेठ छोड़ दीन्हे सब साज़/

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बरसत पानी मही जुड़ानी -आज अषाढ़ जलावत मोहि /
सावन भादों घेरि घेरि के -वसन उतारि चिढ़ावत मोहि/
मास कुवार बड़ा बलशाली- सपने मे कन्त दिखावत रोज/
विविध भाँति तलफत मन मीना, हीरक हार रहे सब खोज/
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कातिक महिमा बरनि ना जाई – ठिठुरन आयि कपारे राज/
अहगन पूस माघ की ठंडी -दूर पिया बिनु कैसा साज़ /
अरर अरर कर बादल बरसे- पावस आज लगावत आग /
टपक टपक बरसत मन पानी, नैना नीर बहा वन लाग /

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राजकिशोर मिश्र ‘राज’
०३/०४/२०१६

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि