आल्ह छ्न्द
आल्ह छ्न्द===== १६+१५=३१ चरणांत गाल -२१
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फागुन पिया गये परदेश, —-भेजे कोई ना संदेश /
जियरा मोर झूमि के बोले – -आयि नाहि काहे संदेश/
चैत सुलग लकड़ी जस भादों-, वैसा हाल दिखावत राज/
चुवत पसीना वैशाखी का- जेठ छोड़ दीन्हे सब साज़/
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बरसत पानी मही जुड़ानी -आज अषाढ़ जलावत मोहि /
सावन भादों घेरि घेरि के -वसन उतारि चिढ़ावत मोहि/
मास कुवार बड़ा बलशाली- सपने मे कन्त दिखावत रोज/
विविध भाँति तलफत मन मीना, हीरक हार रहे सब खोज/
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कातिक महिमा बरनि ना जाई – ठिठुरन आयि कपारे राज/
अहगन पूस माघ की ठंडी -दूर पिया बिनु कैसा साज़ /
अरर अरर कर बादल बरसे- पावस आज लगावत आग /
टपक टपक बरसत मन पानी, नैना नीर बहा वन लाग /
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राजकिशोर मिश्र ‘राज’
०३/०४/२०१६