लघुकथा

आज मेरी बारी है ..

” बेटा कितनी देर और है स्टेशन आने में ? हमें लेने के लिए तेरी दीदी- जीजा जी आ जायेंगे ना ? ”

” हाँ माँ ! आ जायेंगे। अगर नहीं आ पाए तो हम टैक्सी कर लेंगे। ”

” अच्छा कितनी देर लगेगी ! क्या टाइम हुआ है ? ”

” दो घंटे और लगेंगे। अभी दो बजे हैं। ”

माँ बेटे का यह वार्तालाप मैं कई देर से देख -सुन रही हूँ।  माँ बार -बार सवाल कर रही है और बेटा शांत भाव से जवाब दे रहा है। मेरे सामने की सीट पर पिता, माँ और बेटा बैठा है। मेरे बराबर जो बेटा है, उसकी पत्नी और बेटा बैठे हैं। माँ की उम्र ज्यादा तो नहीं है लेकिन शायद उनको भूल जाने की बीमारी है। तभी तो बार -बार सवाल दोहरा रही है।

” तुम्हारी माँ के इस तरह सवाल करने से तुम परेशान हो जाते हो ना बेटा ? यह तो इसकी हर रोज आदत बन गई है ! ” पिता ने बेटे से कहा।

” नहीं पिताजी ! माँ के इस तरह बार -बार सवाल करने पर मुझे वह कहानी याद आ जाती है जिसमें एक वृद्ध  पिता के बार -बार सवाल करने पर बेटा भड़क जाता है ! मैं सोचता हूँ कि मैंने भी तो माँ को कितना सताया होगा लेकिन माँ  ने मुझे प्यार ही  दिया। आज मेरी बारी है तो मैं क्यों परेशान होऊँ ! बेटे ने प्यार और विनम्रता से  जवाब दिया तो माँ का हाथ स्वतः ही बेटे सर पर चला गया। पिता भी भरी आँखों से प्यार और आशीर्वाद दे रहे थे। मेरा मन भी द्रवित हुआ जा रहा था।

*उपासना सियाग

नाम -- उपासना सियाग पति का नाम -- श्री संजय सियाग जन्म -- 26 सितम्बर शिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ), महारानी कॉलेज , जयपुर ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए एस दिल्ली प्रकाशित रचनाएं --- 6 साँझा काव्य संग्रह, ज्योतिष पर लेख , कहानी और कवितायेँ विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है।