कविता : नन्ही कली
मैं हूँ एक नन्ही कली
जरा मुझको तू खिलने देना,
होगा तेरा उपकार बड़ा
मुझे इस दुनिया से मिलने देना,
मैं हूँ एक नन्ही कली
जरा मुझको तू खिलने देना,
मान बढ़ाउंगी हरपल तेरा
इतना विश्वास तू कर लेना,
मैं हूँ एक नन्ही कली
जरा मुझको तू खिलने देना,
अपनी खुशबू से इस जग
को मरते दम तक महकाउंगी,
अपनी सुंदरता से तेरे
बाग़ का सौंदर्य बढ़ाउंगी
मैं हूँ एक नन्ही कली
जरा मुझको तू खिलने देना,
हरपल दूंगी नयी बहारे
मुझे अपनों में तू समझ लेना,
चाहू इतना बस मुझे लाड
प्यार से तू सदा तकते रहना
मैं हूँ एक नन्ही कली
जरा मुझको तू खिलने देना,
एक अरदास नवीन शर्मा
की कलियों को खिलने देना,
महक उठेगा आँगन तेरा
थोडा प्यार छिड़क देना
— नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
श्रोत्रिय निवास बयाना