जिस दिन भ्रष्ट,नीच दुष्कर्मी,फाँसी पर लटकाये जाएंगे । ठीक उसी दिन भारत में फिर से अच्छे दिन आएंगे । आरक्षण दीनों को होगा,बाकी प्रतिस्पर्धा एक समान । उसी दिवस होगा भारत का, मित्रो सच नूतन निर्मान ।। – नवीन श्रोत्रिय उत्कर्ष
Author: नवीन श्रोत्रिय 'उत्कर्ष'
माँ सरस्वती सामूहिक वंदना
माँ सरस्वती सामूहिक वंदना ———————————– नमस्तुभ्यं माँ आदिशक्ति,नमस्तुभ्यं वागेश्वरी, नमस्तुभ्यं वैकुण्ठ वासिनी,नमस्तुभ्यं माहेश्वरी, जय वाचा जय ईश्वरी,जय महाश्वेता मात, नमन तुम्हे वागेश्वरी, देना हरपल साथ, मेरा नमन करो स्वीकार जय सरस्वती माता, मिटे दोष न बनूँ वाचाल,जय सरस्वती माता, माँ जगदम्बे आदि भवानी, लाज रखो हे ! माता रानी, करते वंदन हम सब तेरा, ले […]
छंद : मधुशाला
विधान : 16/14=30,अंत 112/22 प्रथम, द्वितीय, व चतुर्थ चरण तुकांत,तृतीय चरण स्वतंत्र आज सभी जन हुए लालची,छल कुदरत से करते हैं । छल कुदरत को बाद स्वयं ही,मरने से भी डरते हैं । भूल रहे है लोग हुआ छल,ये उनके ही जीवन से । पर्वत, वृक्ष , नीर दोहन कर,नित्य मृत्यु को वरते हैं […]
कुण्डलियाँ
(बृजभाषा में प्रथम प्रयास) गाड़ी लाडी और की, मन कूँ सदा लुभाय चाहे चोखी आपनी, पर मन मानत नाय पर मन मानत नाय, नैन औरन कूँ घूरत अरसै सदा नवीन,नैन अरु मन की ई लत धरौ ध्यान उत्कर्ष, आप की आवैं आड़ी औरन कौ का ओर, रहे लाड़ी या गाडी
दोहा-रोला-कुंडली
दोहा *अपने पुरखों ने कही,बड़ी तथ्य की बात ।* *व्यर्थ खर्च करना नही,व्यर्थ स्वयं से घात ।।* रोला व्यर्थ स्वयं से घात,कष्टमय जीवन होता । पाता वह ही धान,खेत में जो है बोता ।। सुनो ! सुमन उत्कर्ष,अधूरे मन के सपने । छोड़े जग सब साथ,त्याग देते सब अपने ।। कुण्डली अपने पुरखों ने कही,बड़ी […]
गीत : भारत देश कहाँ
चूम लिये फांसी का फंदा,भगतसिंह,सुख,राज,जहाँ । इंकलाब की बोलो वाला,मेरा भारत देश कहाँ । वो प्यारा भारत देश कहाँ, …………… अंग्रेजो का महल ढहाया,वो दीवानी नारे थे । भारत को जीने वाले वह,माँ भारति के प्यारे थे । किधर गया वह देश प्रेम अब,पनप रहा क्यों बैर यहाँ इंकलाब के बोलो वाला,मेरा भारत देश कहाँ […]
ग़जल : पत्नी
बनी है जान की आफत,कहूँ पर प्राण की प्यारी । लगी थी वो बड़ी सुंदर, असल में यार बीमारी ।। सवेरे ही सवेरे गूंजते है बोल कानो में, खड़े होकर करो पति देव जी झाड़ू की’ तैयारी ।। सुना है मालकिन होती हमारे अर्ध अंगों की । यहाँ उलटी बही गंगा,हुई पूरे पे वो भारी […]
चींटी और हाथी
चींटी एक चढ़ी पर्वत पे,गुस्से से होकर के लाल । हाथी आज नही बच पावे,बनके आई मानो काल । ——– कुल मेटू तेरे मैं सारो,कोऊ आज नही बच पाय । बहुत सितम झेले है अब तक,आज सभी लूंगी भरपाय ।। ——- कुल का नाश किया मेरे का,रौंद पैर के नीचे हाय । सुन निर्मम हत्यारे […]
मनहरण कवित / घनाक्षरी
चल रहे जिस पथ, मारग है नीति का वो,आगे अभी बाकी सारा, आपका ये जीवन, कोण घडी जाने आवे, संकट को लेके साथ,मजबूत कर आज, अब अपना मन, हार मत देख काम, लगा रह अविराम,कर वो करम की, लागे अंग भोजन, अपव्यय को रोक सदा, आमद […]
जिंदगी
कभी धूप की तरह,खिल उठती है,वो….फूलों की मुस्कराती है,बारिश बनकर,तपती धरा को,संतृप्त कर देती है,घोल देती है फिजाओं में महक,कर देती है सुगन्धित,तन, मन,बेहिसाब लुटाती है,प्यार अपना,कभी बन जाती है,पतझड़ का मौसम,छीन लेती है,रंगत सारी शाखों से,मुरझा जाती है,फूलो की तरह,धूप से चोट खाकर,तब शेष रहता है,ठूंठ बनके जीवन,मुरझाए सपनो की,साकारता लिये,दिखा देती है रास्ता,संघर्ष […]