कविताकुण्डली/छंद

छंद : मधुशाला

विधान : 16/14=30,अंत 112/22 प्रथम, द्वितीय, व चतुर्थ चरण तुकांत,तृतीय चरण स्वतंत्र

 

आज सभी जन हुए लालची,छल कुदरत से करते हैं ।
छल  कुदरत  को  बाद स्वयं ही,मरने से भी डरते हैं ।
भूल  रहे  है  लोग  हुआ  छल,ये उनके ही जीवन से ।
पर्वत, वृक्ष , नीर  दोहन  कर,नित्य मृत्यु को वरते हैं ।

Madhushaala chhand

नवीन श्रोत्रिय 'उत्कर्ष'

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