ग़ज़ल
मजार-ए-‘नीलू’ पे गुमशूम है चंदा
सितारे भी रोये छिटक- छिटक के।।
बिछड़ के जमीं से रोये फफक के
ये काले घनेरे बादल फलक के ।।
फना जीस्त भी अब तलक है रौशन
चरागा करें बिजलियां यूँ चमक के।।
गुलशन में भी हैं बहारों का आलम
सजदे कर रहे फूल सारे महक के ।।
— आरती आलोक वर्मा