लक्ष्मी की कृपा
बहुत दिनों बाद मेरे सामने वाला फ्लैट किराए पर लगा! सभी फ्लैट वासियों के साथ साथ मुझे भी खुशी और उत्सुकता हुई कि चलो घर के सामने कोई दिखेगा तो सही . भले ही पड़ोसी अच्छा हो या बुरा!
मन ही मन सोंच रही थी कि ज्यादा घुलूंगी मिलूंगी नहीं.. क्यों कि बच्चों की पढ़ाई , अपना काम सब बाधित होता है ज्यादा सामाजिक होने पर और फिर पता नहीं कैसे होंगे वे लोग.मिलने को तो कई लोग मिल जाते हैं यहाँ.. घुल मिल भी जाते हैं. दोस्ती की दुहाई देकर दुख सुख भी बांटते हैं.मुंह पर तो प्रशंसा के पुल बांधते हैं और पीठ पीछे चुगली करने से भी नहीं चूकतेइसलिए मैंने मन ही मन सोंच लिया कि पहले मैं उनके रंग ढंग देखकर ही घुलूंगी मिलूंगी!
करीब शाम चार बजे आए मेरे पडोसी मिस्टर एंड मिसेज सिन्हा जी..! मेरे ड्राइंग रूम की खिड़की से सामने वाले फ्लैट में आने जाने वालों की आहट मिल जाती थी फिर भी मैं अपने स्वभाव के विपरीत बैठी खटर पटर की आवाज सुन रही थी.. सोंची नहीं निकलूंगी बाहर पर आदत से मजबूर मेरे कदम बढ़ ही गए नए पड़ोसी के दरवाजे तक चाय पकौड़ी के साथ..!
देखी पड़ोसन बिल्कुल ही साधारण सी साड़ी में लिपटी हुई माथे पर बड़ी सी बिंदी भारी भरकम शरीर कुछ थकी हुई सी.. चाय पकौड़ी को देखकर शायद बहुत ही राहत मिली उन्हें चेहरे पर मुस्कान खिल गई और पति पत्नी दोनों ही शुक्रिया अदा करने से नहीं चूके.! मैंने भी कह दिया मैंने कुछ भी तो नहीं किया और रात के भोजन के लिए आमंत्रित कर आई! उनसे मिलने के बाद काफी खुशी मिली मुझे.. मन में सोंचने लगी इतने बड़े पद पर रहने के बाद भी ज़रा सा भी दंभ नहीं है और पहली ही नजर में वे अच्छे लगने लगे .!
रात्रि में वे सपरिवार हमारे घर आए बच्चे तो घर में प्रवेश करते ही प्रसन्नता से उछल पड़े.. कोई मेरे ड्राइंग में सजे हुए एक्वेरियम की मछलियों को देखने लगा तो कोई दीवार में लगे पेंटिंग्स का.!थोड़ा बहुत दबी जुबान में मिस्टर सिन्हा भी प्रशंसा कर ही दिए पर मिसेज सिन्हा बिल्कुल धीर – गम्भीर, चुपचाप मूरत बनी बैठी थी..!
खाने-पीने के साथ-साथ बातें भी हुई.. और बहुत देर बाद मिसेज सिन्हा का मौन ब्रत टूटाकहने लगी देखिए जी हमलोग सादा जीवन जीना पसंद करते हैं.. दिखावा में विश्वास नहीं करते.. और हमारा परिवार थोड़े में ही सन्तुष्ट है.और फिर अपनी कहानी सुनाने लगीं!
एक रिश्तेदार ( ममेरी देवर ) के यहाँ मैं कुछ दिनों के लिए गई थी. देवरानी ( पम्मी ) सुन्दर – सुन्दर महंगे कपड़े पहनी थी पर दूसरे ही दिन बिल्कुल साधरण कपड़े पहनने लगी मैंने कहा कल तुम बहुत सुंदर लग रही थी आज क्यों इतनी सिम्पलतब वह कहने लगी भाभी आपकी सादगी देखकर मुझे शर्म महसूस होने लगी इसलिए कि आप इतनी सम्पन्न और फिर भी इतनी सादगी .!
इतना सुनने के बाद तो मेरे मन में उनके लिए और भी अधिक सम्मान उत्पन्न हो गया! हम पड़ोसी में प्रगाढ़ता बढ़ने लगी.सिनेमा. बाजार या कहीं भी साथ साथ निकलते थे अपना दुख सुख एक-दूसरे से बांटने लगे.!
तब ब्रैंडेड कपड़े सभी नहीं पहनते थे. किन्तु हमारे बच्चे तब भी ब्रैंडेड कपड़े , जूते आदि पहनते थे! एकदिन मिस्टर सिन्हा ने मेरे पति से कहा कि इतने महंगे-महंगे कपड़े अभी से पहनाएंगे तो बच्चों में खुद कमाने की जिज्ञासा ही नहीं रहेगी.!
तब स्कूल के परीक्षाओं में उनके बच्चों का नम्बर अधिक आता था पतिदेव ने आकर मुझे सुनाई तो मुझे भी उनकी बातें अच्छी और सच्ची लगी.! यही बात मैंने अपने बेटे ऋषि से कही.. तो उसने कहा कि आप चिंता मत करिए.. यदि हम आज ऐसे रह रहे हैं तो कल और भी बेहतर तरीके से रहने के लिए और भी मेहनत करेंगे और फिर कहा कि दुनिया में हर इन्सान अपने से ऊपर वाले इन्सान को गाली देता है पर रहना चाहता है उन्हीं की तरह. यह सब वे ईर्ष्या वश कह रहे हैं. आप लोगों की बातें क्यों सुनती हैं.!
मैने अपने बेटे से कोई बहस नहीं करना चाहती थी इसलिए चुप रहना ही उचित समझा! पर उस समय मिस्टर सिन्हा की बातें मुझे कुछ हद तक सही लग रही थीं पर करती भी क्या. बच्चों की आदतें तो मैंने ही खराब की थी!
धीरे-धीरे समय बीतता गया.. हम दोनों के परिवारों के बीच प्रगाढ़ता बढ़ने लगी! मिस्टर सिन्हा के ऊपर लक्ष्मी की कृपा भी बरसने लगी! कुछ ही महीनों में उन्होंने सामने वाला फ्लैट खरीद भी लिया घर के इन्टिरियर में बिल्कुल मेरे घर की काॅपी की गई थी! बच्चों के महंगे ब्रैंडेड कपड़ों की तो पूछिए ही मत!
और मिसेज सिन्हा के वार्डरोब में तो महंगी साड़ियाँ देखते ही बनती थीं. मिस्टर सिन्हा के क्या कहने. उनकी तो अतृप्त ईच्छा मानो अब जाकर पूरी हुई हो. पचास वर्ष की आयु में किशोरों के तरह कपड़े पहन मानो किशोर ही बन गए हों!
मुझे अपने बेटे की कही हुई एक एक बात सही लगने लगी और मैं मन ही मन सोंचने लगी कि यह तो लक्ष्मी जी की कृपा है!
© किरण सिंह
अच्छी कहानी ! पर अर्द्धविराम और पूर्ण विराम की जगह तीन-चार बिन्दुओं का उपयोग समझ में नहीं आया.
अच्छी कहानी ! पर अर्द्धविराम और पूर्ण विराम की जगह तीन-चार बिन्दुओं का उपयोग समझ में नहीं आया.