संस्मरण

मेरी कहानी 121

आज 14 अप्रैल है और आज मैं 73 वर्ष का बूढ़ा हो गया हूँ। यह दिन मेरे लिए मेरे जनम दिन से भी ज़्यादा महत्व रखता है क़्योंकि इसी दिन मेरी और मेरी पत्नी कुलवंत कौर की शादी भी हुई थी और आज हमारी शादी की 49 वीं सालगिरह है। आज मैं बचपन की बातों को छोड़ कर, अपनी पत्नी से ही शुरू करूँगा। बुढ़ापे में पियार मुहबत की बातें करना कुछ अटपटा सा लगे लेकिन नहीं लिखूंगा तो यह सब बातें मेरे साथ ही दफ़न हो जाएंगी। यूं तो अपनी कहानी में बहुत पहले ही लिख चुक्का हूँ कि मेरी और मेरी अर्धांगिनी की सगाई 1955 में हो गई थी जब मैं 12 साल का था और मेरी पत्नी 9 साल की थी, और हमारी शादी, सगाई के 12 साल बाद 1967 में  हुई थी।  आज यह बात मैं बड़े फखर से कहूंगा कि यह सगाई मेरे दादा जी और कुलवंत के दादा जी ने तय की थी और आज मैं उन दोनों बज़ुर्गों की याद को नमन करता हूँ। बज़ुर्गों के आशीर्वाद से आज हम दो से 14 मैंबर हो गए हैं। हमारे दो बेटियां और एक बेटा हुए थे और आगे बड़ी बेटी का एक बेटा और एक बेटी है। छोटी बेटी के दो बेटे हैं और मेरे बेटे के दो भी बेटे हैं।
मैं अपनी पत्नी का धन्यवाद करना चाहता हूँ कि उस ने मुझे इतने अच्छे बच्चे दिए जो सब तरह से हम को खुश रखते हैं। शादी से ले कर आज तक कुलवंत  ने जो मेरा साथ दिया वह सही मानों में एक जोत, दो मूर्ती की तरह ही रहा है जैसा कि शादी के वक्त शिक्षा दी गई थी। अपनी ओर से मैं भी कह सकता हूँ कि मैंने भी एक पति होने की हैसियत से अपना किरदार निभाने में कोई कसर  नहीं छोड़ी। अकसर जब शादी होती है तो पति पत्नी की सभी आदतें एक दूसरे जैसी होनी मुश्किल सी बात होती है। यह तो कुछ पाना, कुछ खोना पड़ता है, जिससे ज़िंदगी की गाड़ी उस में लगे दो शौक अब्जॉर्वर की तरह उभड़ खाबड़ रास्तों पर भी स्मूद हो कर चले। कलवंत कुछ सख्त सुभाव रखती है और मैं बहुत नरम सुभाव वाला हूँ। हमारा आपस में प्रेम तो बहुत है लेकिन कुलवंत कई दफा कुछ कड़वा हो जाती है और मैं उसे इस तरह देखकर कुछ ढीला पढ़ जाता हूँ किओंकी मुझे पता है कि उस का यह कड़वापन एक दो मिंट के लिए ही होता है, कुछ देर बाद उस को पता ही नहीं होता कि किया बात हुई थी। मुझे गुस्सा भी क्यों आएगा किओंकी कुलवंत ने सारी उम्र एक ईमानदार सच्ची सहयोगिनी की तरह मेरी सेवा की है और अब तो और भी ज़्यादा करती है किओंकी मैं शरीरक कष्ट से गुज़र रहा हूँ। अब उस की झिडकें  कुछ मीठी होती हैं, जैसे “तुमने अभी तक खाना क्यों नहीं खाया, ठंडा हो गया है, अब मुझे फिर गर्म करना पड़ेगा और मैं भी थक्की हुई हूँ “. उसकी ऐसी बातों से मैं भीतर ही भीतर खुश होता हूँ। मुझे तरस भी बहुत आता है क़्योंकि जो काम कभी मैं किया करता था, अब उसको करने पड़ते हैं, मैं तो खाना भी कभी कभी बना दिया करता था लेकिन अब पूरी तरह से मैं कुलवंत पर ही निर्भर हूँ और यही बात मुझे तकलीफ देती है।
1966 तक हम दोनों एक दूसरे के बारे में कुछ नहीं जानते थे, जब हमारी शादी की बातें शुरू हुईं तो तब ही हम कुछ कुछ जान्ने लगे थे, वह भी खतों के जरिए। उस समय खत लिखना वह भी शादी से पहले एक असम्भव बात ही थी। मैंने ही हौसला करके अपने पिताजी को खत लिखने की इजाजत माँगी थी। मेरे पिता जी कुलवंत के पिताजी से मिले और उन्होंने इसमें कोई एतराज़ नहीं जताया था और इजाजत मिलने पर मैंने पहला खत कुलवंत को शायद दिसम्बर 1966 में डाला था. क्या लिखा था उसमें, मुझे कुछ भी याद नहीं लेकिन इतना याद है कि कुलवंत का खत बहुत ही साधाहरन गाँव की लड़किओं जैसा ही था। जैसे जैसे हम खत लिखते गए, ख़त लंबे होते गए। अब इन खतों को पड़ने को मन नहीं करता किओंकी वह जवानी के दिन थे और अब यह ख़त सब बेहूदा लगते हैं। एक खत तो मैंने आठ रंगो में 17 बड़े बड़े सफे का लिखा था और अब तो इनको पड़ने में ही संकोच होता है, इनमें अब कुछ गिले शिकवे भी होने लगे थे, फिर भी मैं कुछ कुछ इन खतों की कुटेशनज लिखूंगा। ” पियारी कुलवंत, आज शाम को तुम्हारा खत मिला, जिस में तीन पेपर थे और ऊट पटांग लिखा हुआ था, मुझे बहुत गुस्सा आया, सोचा कि कोई जवाब ना दूँ, सुबह उठा तो सोचा मना गुस्सा थूक दो, मैंने तुम्हारा एपरल फूल बनाया और तुम ने खामखाह इस बात का गुसा कर लिया। अभी मैंने सनान  नहीं किया है। यह खत लिख कर ही सनान करना है, फिर पगड़ी बाँध कर फगवाड़े को जाना है। इस वक्त मैं चुबारे के ऊपर बैठा हूँ, नज़दीक चिड़ियाँ चूं चूं कर रही हैं, पास के घर से दूध रिड्कन की आवाज़ आ रही है, दूध में मधाणी की आवाज़ आ रही है, कभी यह आवाज़ बंद हो जाती है शाएद यह देखने के लिए कि लस्सी के ऊपर माखन आया है या नहीं, एक छत पर दो बच्चे शाएद अभी मुंह भी धोया नहीं होगा, पतंग उड़ा रहे हैं, आज धुप बहुत अच्छी लगती है, सुबह की सूर्य की लाली बहुत सुन्दर लग रही है, मैं सोचता हूँ यह सूर्य यह सुबह और यह वातावरण दुबारा कभी मिल सकेगा ? गाँव की ताज़ी हवा, घर वालों का पियार और मीठी बातें, कितना मज़ा है गाँव में।
                  यह ख़त जो 12 अप्रैल को शादी से दो दिन पहले का है, यह ही 17 पेज का था। इसकी कुछ बातें लिखूंगा। ” मेरी पियारी कुलवंत, सत सिरी अकाल, सबसे पहले तुझे तेरे विवाह की वधाई हो, तेरे कहने के मुताबिक तेरा मनी आर्डर 14 तारीख  की सुबह को तेरे पास पहुँच जाएगा (यानि मैं). कुलवंत, ज़िंदगी इतना बड़ा ग्रन्थ है जो पड़ने से कभी खत्म नहीं होगा, यह एक ऐसी कथा है जिसका भोग पड़ना असम्भव सा लगता है, हंसी ख़ुशी गमी उदासी उतराई चढ़ाई ज़िंदगी को एक रूप देती है और यह ही ज़िंदगी का नाम है ” और इस के बाद मैंने अपने बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ था। एक सफे पर लिखा हुआ है, ” कुलवंत ! तेरी मेरी पहली मुलाकात भी एक अजीबो गरीब ही थी, सारी रात मैंने तड़प तड़प के गुज़ारी, सुबह उठते ही मैंने साइकल उठाया और  धैनोवाली की तरफ मुंह उठा लिया, रास्ते में कई जानने वाले मिले लेकिन मैं सरसरी हैलो हैलो करके चलता रहा किओंकी मैं लेट होना नहीं चाहता था किओंकी मुझे डर था कि कहीं तुम इंतज़ार करके लौट ना जाओ, खैर मैं जब जीटी रोड धैनोवाली बस स्टैंड पर पहुंचा तो तुम्हें टाहली के बृक्ष के नीचे खड़ी को देखा और देखते ही पहचान गया, हा हा अगर कोई और भी खड़ी होती तो मैं उनमें भी तुमको ही ढूंढता, गुस्सा नहीं करना, तू ने शर्मा कर मुंह दुसरी तरफ कर लिया था लेकिन मैं शमी को झट से पहचान गया था, मैंने सोचा यही कांती है। तू ने जो अपनी फोटो मुझे इंगलैंड में भेजी थी, उस से लगता था, तुम बहुत गोरी होगी, पहले तो मुझे यकींन ही नहीं आया कि यही कांती  है, तुम्हारा सांवला रंग देख कर मैं कुछ निराश हो गया था, फिर तुम पे पियार आ गया, मन चाहता था दौड़ कर तुझे अपनी बाहों में ले कर चूम लूँ।
बहुत देर से तेरी यादों के शोहले मेरे सीने में भड़क रहे थे लेकिन तू ने कोई हरकत नहीं की और मैं इतना निराश  हो गया था कि सोचा वापस मुड़ जाऊं। मैं बहुत से क़ियास अपने मन में लगाने लगा था, “किया यह हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और तो नहीं ?”. जब खत लिखती थी तो बहुत बातें करती थी लेकिन अब तुम चुप्प थी। खैर हम रामा मंडी से दाईं ओर चल दिए और छावनी की ओर चल पड़े, मैंने बहुत बातें कीं लेकिन तुम ने कोई यथाशक्त जवाब नहीं दिया, वह अंगूठी जो पहले पियार की मैंने तुम को देनी थी, मैंने तुझे बताया तो तू ने कोई जवाब भी नहीं दिया, और मैंने फिर दुबारा कहा भी ना था। फिर मुझे पियास लगी तो एक दूकान से मैंने पानी पिया और छावनी रेलवे स्टेशन पर साइकल रख कर हमने ट्रेन ली और जालंधर पहुँच गए। भूख हम दोनों को लगी हुई थी और बहुत देर तक कोई अच्छा होटल ढूँढ़ते रहे। एक होटल में बैठ कर रोटी खाई, सब्ज़ी मटर पनीर दाल बगैरा  थी, फिर तुमने एक सेव काटा और हम दोनों ने खाया, शमी मेज के ऊपर बैठी थी। मैं एक कैलेंडर की ओर देख रहा था क़्योंकि मैं बोर हो रहा था। तुमने पूछा था, “किया सोच रहे हो ?” मैंने जवाब दिया था कुछ नहीं, बस जलिआं वाले बाग़ का सीन देख रहा था।  फिर हम बाजार में आ गए और मैंने फलों की एक टोकरी खरीदी, फिर हम ने स्टेशन पर आ कर टिकट लिए और छावनी आ गए, गाड़ी में कोई ख़ास बात नहीं हुई थी, हम ने अपने साइकल लिए और अब हमारी गरमा गर्मी हुई थी, तू फ्रूट की टोकरी लेती नहीं थी और मैं जबरदस्ती तुम्हारे साइकल पे बाँध रहा था, तू मुझे पैसे दे रही थी और मैं ले नहीं रहा था और आखर में तू टोकरी ले जाने के लिए मान गई थी, फिर तुम्हारे गाँव की एक लड़की आ गई थी और उसने मुझे भी सत सिरी अकाल बोला  था, फिर वह अपना साइकल लेने चले गई थी, और मैं उस लड़की की इंतज़ार कर रहा था, ताकि हम इकठे चलें, तू खीझ गई थी और बोली थी, ” आप ने अब उसके साथ जाना है ?” मैंने कहा था, “वह माइंड करेगी “. फिर हम धैनोवाली  फाटक पर आ गए थे और तू गाँव की ओर चल पडी थी। दुसरी दफा हम मिले तो तुम्हारी मदर तुम्हारे साथ थी। तुम्हारी मदर ने आते ही कहा था, “ज़्यादा ना घूमा फिरा करो, तुम्हारी शादी नज़दीक आ रही है “.
फिर हम कपड़ों की दूकान पर गए और तुम्हारी सहेली भिंदर को भी मिले, तुम उससे बिछुड़ने वाली थी, इस लिए तेरी सहेली रो पडी थी। फिर तेरी मदर ने हमें 21 रूपए फिल्म देखने के लिए दिए थे और खुद वह किसी से मिलने चले गई थी, हमने फिल्म देखि नहीं थी, बस बाजार के चक्क्र ही लगाते रहे थे, अब तू मेरे साथ खुल कर बातें करने लगी थीं और हंस रही थी और मैं ने भी तुम्हारा हाथ पकड़ लिया था, और तू ने कहा था, “यह इंगलैंड नहीं है, लोग देख रहे हैं ” और मैंने भी हाथ छोड़ दिया था। कुछ कपडे बगैरा जो तेरी मदर ने खरीद लिए थे, लेकर हम तुम्हारे घर आ गए थे और अब तुम्हारे घर आ कर बहुत हंसी मज़ाक हुआ था, घर आ कर तो तू एक दम बदल ही गई थी और मेरे लिए बहुत कुछ खाने के लिए ले आ रही थी और तुम मेरे लिए खाने बनाने में मसरूफ हो गई थी, घर आ कर तो तू ऊंची ऊंची बोल रही थी और मुझे भी ऐसा मालूम हो रहा था जैसे मैं पहले भी तुम्हारे घर आता रहा हूँ।
“यह मेरा आख़री ख़त है, इस के बाद शाएद लिखने की  जरुरत ना पड़े “. और आज मैं सोचता हूँ कि यह बात बिलकुल सही निकली किओंकि इस के बाद कोई ख़त लिखा ही नहीं। आगे जा कर इसी ख़त में लिखा है, ” कांती तू मुझे शादी के दिन भी नॉर्मल मिलती रहना, खामखाह रोती नहीं रहना, अगर नहीं मिली तो घर आ के मैंने तुझे बुलाना नहीं। शादी का सारा काम फटाफट ख़तम कर देना है और दुपहर को हमने राणी पुर आ जाना है, हाँ इस बात का धियान रखना कि ज़िआदा रोना नहीं, नहीं तो मुझे भी रोना आ जाएगा। आज तुझे हल्दी लग रही होगी और मैं रेडिओ सुन रहा हूँ,  मौसम के बारे में बता रहे हैं कि आने वाले चौबीस घंटों में कहीं कहीं बारश के छींटे पड़ेंगे, अगर ऐसा होगा तो लोगों ने कहना है कि हम बर्तन चाटते रहे होंगे। हाँ नीचे बहुत सी औरतें गा रही हैं और उन के बोल मुझे समझ नहीं आ रहे, वोह गा रही हैं, “हरिया नी माएं, हरिया नी बहिनें, हरिया ते दिल भागीं भरिया “, लो जी ! इसके किया अर्थ हुए ?. कांती ! तू मुझे इतनी अच्छी लगती हैं कि तेरे बिन जी नहीं लगता, बस मन यही कहता है कि एक पल भी तू मेरी आँखों के सामने से दूर ना होना, आज दिल करता है, सफे काले करता जाऊं, लेकिन अब मैं तेरा ज़िआदा वक्त भी बर्बाद नहीं करना चाहता किओंकि तेरे पास भी वक्त ज़िआदा नहीं है, ख़त के स्तार्वें सफे पर तुझ को यह भी लिख देता हूँ कि अगर तेरा दिल नाचने को करे तो जी भर कर नाच ले, बल्ले बल्ले बई भाबी मेरी गुत्त ना करीं, मैनूं डर सपनी तों आवे, इन खतों को किसी ऐसी जगह रखना यहाँ किसी की नज़र ना पड़े, यह ख़त बहुत कीमती हैं।
कांती ! आ मेरे गले लग जा, बहुत दिल करता है तुझे देखने के लिए, एक दुसरे से बिछुड़ जाने की घड्यां भी कितनी मज़ेदार होती हैं, हम ने कितने शुगल किये, कभी गुस्से का खत डाल देना, फिर दूसरे दिन हंसी मज़ाक का डाल देना और अपना पियार भी इतना कि  जल्दी ही एक दूसरे को खुश कर देना,  एक दफा तू ने बहुत लंबा खत डाला था जिस को तूने अखबार का नाम दिया था, शुरू से अब तक हम सोचें तो कितनी सिआही हम ने खरच की, कितने एअर लैटरों पर पैसे लगे, फिर इंडिया में एअर मेल लैटर मिलने खत्म हो गए थे तो तू बहुत से टिकट लगा कर खत डालती थी, उस अंगूठी के बारे में कितनी बातें हुई थीं, तेरी ऊँगली पतली थी और मैंने अंगूठी वापस ले ली थी, मैं सोचता हूँ की अगर हम आपस में खत ना लिखते तो किया हमारा इतना पियार बढ़ता ? बेछक होता जरूर लेकिन इतना नहीं होता जो अब है, कभी लिखना मेरे पैन की निब्ब टूट गई है, कभी लिखना आज बिजली को पता नहीं किया हो रहा है बार बार आंखमिचोली खेल रही है, मैं मोम बत्ती ले कर आई हूँ, अब खत के ऊपर मोम गिर पड़ा है,  इन बातों को सोच कर बड़ा मज़ा आ रहा है, ऐसे लोग कितने होंगे जो आज के ज़माने में हमारी तरह करते होंगे, शायद कोई भी नहीं, हमारे गाँव में तो अगर किसी को पता चल जाए कि अपने सुसराल भी मैं जा आया हूँ तो पता नहीं कितनी बातें होंगी, बई हम ने तो कमाल कर दिया है, एक नमूना पेश कर दिया है, एक रास्ता बना  दिया है, आगे कोई इस रास्ते पर चले या ना, अच्छा बई अब मैं तुझे तेरी शादी की वधाई पेश करता हूँ, भगवान् करे तू हमेशा सुहागवती रहें, तेरा पति तुझ से कभी लड़ाई झगड़ा ना करे, हर काम में तुम्हारा मशवरा ले, मुझे पता है तू अब हंस रही है, मैं सच्चे दिल से पियार के फूल भेंट कर रहा हूँ, शब्दों का यह तोहफा तुझे भेज रहा हूँ, और मेरे पास कुछ भी नहीं है, और यकीन मानो यह शब्द ही दुन्याँ में सब से ऊंची चीज़ है, अब हम ने एक नई ज़िंदगी शुरू करनी है और house को home बनाना है, अच्छा  कुलवंत ! एक पियार भरे चूमे के साथ खत को बंद करता हूँ, हमेशा ही तेरा पियार, मैं हूँ सिर्फ तेरा, गुरमेल भमरा। beauty of your heart is a magnet which attracts the heart of gurmail .
हम ने चालीस पचास खत लिखे होंगे लेकिन बहुत से खत हम ने शादी के बाद ही फाड़ दिए थे और अब भी मेरे सामने बीस के करीब पड़े हैं और इन को पड़ने से भी हिचकचाहट होती है क़्योंकि जवानी और बुढ़ापे का यही अंतर है, अब यह खत हमारी मूर्खता से भरे प्रतीत हो रहे हैं। जब हम बूढ़े हो जाते हैं तो युवा लड़के लड़किओं पे सौ नुकस निकालते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि कभी हमारा भी ज़माना था। मेरे सामने जो खत पड़े हैं उनमें से मैंने चुन चुन कर कुछ लाइनें लिखी हैं, कुछ खत कुलवंत ने कल उठा कर देखे तो हैरान हो गई कि इतने छोटे अक्षरों से लिखा हुआ है कि यह तो पढ़ भी नहीं होते। 1982 में मैं अपने बेटे को ले कर इंडिया आया था, मेरे छोटे  भाई निर्मल की पत्नी का भाई तरसेम भी गाँव में आया हुआ था। एक दिन वह एक अलमारी से ऑडियो टेप ले आया और मुझे बोला, ” भा जी, इस टेप को सुनो तो “. जब मैंने टेप सुनी तो मैं हैरान हो गया क़्योंकि यह टेप मैं और कुलवंत ने शादी के कुछ दिन बाद ही अपने चुबारे में रिकार्ड की थी और हम इस को भूल ही गए थे, यह आधे घंटे की रिकार्डिंग थी। सो मैं यहां ले आया और अब हमारे पास है। एक दो दफा हम ने यह रिकार्डिंग सुनी है और हैरान होते हैं कि हमारी बातों में कितना अंतर आ गया है। कुलवंत की आवाज़ मासूमियत से भरी हुई है, बात बात पे जी जी बोलती है, मेरी कितनी इज़त करती है, हा हा और अब शेरनी बनी  हुई है।
शादी के इन 49 सालों में किया कुछ हुआ, सोचते हैं तो हैरान हो जाते हैं। आज शाम को बच्चे आएंगे और हमें पर्सन करेंगे। ज़िंदगी में सुख भी देखे और दुःख भी, रोये भी और हंसे  भी, यूं तो इंसान कभी सतुष्ट होता नहीं लेकिन मैं कह सकता हूँ कि हमारी ज़िंदगी की फिल्म का happy end ही होगा,
 ”प्रिये
मैंने अपने मन में बसाली है तेरी मूरत,
अब भी मेरे सामने है वही सोलह साल की सलोनी-सी सूरत,
पहले तुम थीं केवल और केवल मेरा प्यार,
तुम्हारे सच्ची सहयोगिनी रूप ने तुम्हें बना दिया है
सघन प्यार के साथ-साथ मेरी ज़रूरत.”
यह एपिसोड मैं कुलवंत को भेंट करता हूँ .

21 thoughts on “मेरी कहानी 121

  • डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

    सहज, सरल शब्दों में बहुत ही सरस प्रस्तुति ..आप दोनों को सब प्रकार से स्वस्थ, सुखी , दीर्घायु जीवन की बहुत-बहुत शुभ कामनाएँ !

    • हम दोनों की ओर से आप का बहुत बहुत धन्यवाद बहन जी .

  • मनजीत कौर

    आदरणीय भाई साहब आपको जन्मदिन की और विवाह की सालगिरह की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं आपकी जोड़ी सदा सलामत रहे परमात्मा आप दोनों को अच्छी सेहत , लम्बी उम्र और जीवन की तमाम खुशिया दें आज का एपिसोड बहुत ही बढ़िया लगा । एक बार फिर से आप को बहुत बहुत बधाई |

  • मनजीत कौर

    आदरणीय भाई साहब आपको जन्मदिन की और विवाह की सालगिरह की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं आपकी जोड़ी सदा सलामत रहे परमात्मा आप दोनों को अच्छी सेहत , लम्बी उम्र और जीवन की तमाम खुशिया दें आज का एपिसोड बहुत ही बढ़िया लगा । एक बार फिर से आप को बहुत बहुत बधाई |

    • मंजीत , आप का बहुत बहुत धन्यवाद . आप सब लोगों के कॉमेंट से मुझे प्रोह्त्सान मिलता है .

  • Man Mohan Kumar Arya

    Namaste Shradhey Sh Gurmail Singh ji. Kai dino bad aaj yeh site padhi hai. Aapko aur bahan ji ko janmdin aur vivah ki varsh ganth ki subhkamnayen aur badhai. Apke jiwan me ghule huve premrash ko dekhkar prasannata ho rahi hai. Prem ka yeh sukh unhi dampattiyon ko Milta hai jaha dono samajhdar aur viveksheel ho. Ishwar aapko swasth, sukhi aur dirghjeevi Karen. Sadar.

    • मनमोहन भाई , पहले तो मुझे इस बात पे खेद हो रहा है कि आप जयविजय से वंचित रहे हैं, दुसरे आप ने जो हमें वधाई सन्देश भेजा है, उस के लिए हम दोनों आप के आभारी हैं . जब कोई खुशिओं में शामल होता है तो खुशीआं कई गुना बड जाती हैं . किन लफ़्ज़ों में आप का धन्यवाद करूँ, वोह शब्द मेरे पास नहीं हैं, बस यही कह सकता हूँ कि आप भी अप्पने परिवार में सदैव सुखी रहें .

    • मनमोहन भाई , पहले तो मुझे इस बात पे खेद हो रहा है कि आप जयविजय से वंचित रहे हैं, दुसरे आप ने जो हमें वधाई सन्देश भेजा है, उस के लिए हम दोनों आप के आभारी हैं . जब कोई खुशिओं में शामल होता है तो खुशीआं कई गुना बड जाती हैं . किन लफ़्ज़ों में आप का धन्यवाद करूँ, वोह शब्द मेरे पास नहीं हैं, बस यही कह सकता हूँ कि आप भी अप्पने परिवार में सदैव सुखी रहें .

  • विजय कुमार सिंघल

    भाई साहब, सादर प्रणाम ! सबसे पहले तो मैं आपको जन्म दिवस की वर्षगाँठ पर हार्दिक शुभकामनायें देता हूँ. प्रभु आपको लम्बी उम्र दे.

    फिर मैं आपको और पूज्या भाभी जी को शादी की सालगिरह के अवसर पर बहुत बहुत शुभकामनायें देता हूँ. आप दोनों की जोड़ी ऐसी ही बनी रहे.

    आज की क़िस्त पढ़कर तबियत खुश हो गयी. आपने अपने खतों में अपने हृदय को उड़ेलकर रख दिया था. बहुत शानदार और नाजेदार बातें हैं. आप अच्छे लेखक शुरू से ही रहे हैं यह आपके खतों को पढकर पता चल जाता है. बहुत खूब !

    • विजय भाई , हम दोनों पती पत्नी आप का तहेदिल से धन्यवाद करते हैं . यह एपिसोड आप ने पसंद किया, हम बहुत खुश हुए . वोह जवानी के दिन थे, पता नहीं बातें कैसे दिमाग में आ जाती थीं . यह एपिसोड लिखने में पहले संकोच होती थी, अब सोचता हूँ अच्छा ही किया .

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    आपको जन्मदिन की और भाभी जी व आपको शादी की सालगिरह की बहुत बहुत बधाई संग ढ़ेरों शुभकामनायें
    लेखन रोचक है

    • बहन जी , मैं और मेरी अर्धांगिनी तहेदिल से आप का धन्यवाद करते है .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, वाह, क्या मेल मिला है. आत्मकथा का यह एपिसोड आपने कुलवंत जी को भेंट किया है और 121वां नंबर भी शगन का. आपको जन्मदिन और विवाह की सालगिरह के अवसर पर ढेरों शुभकामनाएं.

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, वाह, क्या मेल मिला है. आत्मकथा का यह एपिसोड आपने कुलवंत जी को भेंट किया है और 121वां नंबर भी शगन का. आपको जन्मदिन और विवाह की सालगिरह के अवसर पर ढेरों शुभकामनाएं.

    • हा हा लीला बहन , आप का यह उपहार तो सब उपहारों से बढिया है और रही बात शगुन की तो मेरे दिमाग में आया ही नहीं, क्या खूब लिखा है आप ने किओंकि पहली ईबुक २१ एपिसोड से ही शुरू हुई थी और यह पांचवीं ईबुक हो गई जो सिर्फ और सिर्फ आप के आशीर्वाद से ही है और आशीर्वाद शब्द सिर्फ बड़ों की म्नौप्ली नहीं होता, यह तो गुरु और चेले जैसा होता है और गुरु उम्र में छोटा भी हो सकता है .अब कुलवंत सखिओं के संग पार्क को वौक करने के लिए गई है और उस के आने पर उस को बताऊंगा, वोह खुश हो जायेगी .राजिंदर और आप सब का तहेदिल से धन्यवाद करते हैं .

  • लीला तिवानी

    121वें एपीसोड में आपने पहले वाक्य में लिखा है, ”आज 14 अप्रैल है और आज मैं 73 वर्ष का बूढ़ा हो गया हूँ”. आगे चलकर यही एपीसोड इस बात की गवाही नहीं देता. इसका कहना है ”आज मैं 73 वर्ष का बूढ़ा हो गया हूँ”. आप बूढ़े हों या जवान, ऐसे ही बने रहें.

  • लीला तिवानी

    121वें एपीसोड में आपने पहले वाक्य में लिखा है, ”आज 14 अप्रैल है और आज मैं 73 वर्ष का बूढ़ा हो गया हूँ”. आगे चलकर यही एपीसोड इस बात की गवाही नहीं देता. इसका कहना है ”आज मैं 73 वर्ष का बूढ़ा हो गया हूँ”. आप बूढ़े हों या जवान, ऐसे ही बने रहें.

    • लीला बहन , आप के संपर्क में आने के बाद अब मैं भी ऐसा ही रहने की कोशिश में लगा रहूँगा .बहुत बहुत धन्यवाद और ख़ास कर राजिंदर का .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, अभी-अभी आपकी आत्मकथा का 121वां एपीसोड पढ़ा. इस एपीसोड को सबसे अलग होना ही था और है भी. आपको जन्मदिन और विवाह की सालगिरह के अवसर पर ढेरों शुभकामनाएं.

    • लीला बहन , जब पहली दफा यह एपिसोड लिखने का सोचा था तो कुछ हिचकचाहट होती थी लेकिन अब सोचता हूँ कि लिख कर अच्छा ही हुआ और आप ने तो इसे शगुन भी बना दिया .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, अभी-अभी आपकी आत्मकथा का 121वां एपीसोड पढ़ा. इस एपीसोड को सबसे अलग होना ही था और है भी. आपको जन्मदिन और विवाह की सालगिरह के अवसर पर ढेरों शुभकामनाएं.

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