गीत : मैं श्रीराम लिखूँ
दिल चाहता है मेरा भी इस कलम से मैं श्रीराम लिखूँ
रावण से अवगुण रखकर पर कैसे उनका नाम लिखूँ
रघुकुल में था जन्म लिया पिता दशरथ की संतान थे वो
हर किसी की आँख के तारे थे माँ कौशल्या की जान थे वो
मर्यादा पुरुषोत्तम थे, इस धरती पर भगवान थे वो
सारे जग का दुख हरना ही केवल उनका काम लिखूँ
रावण से अवगुण रखकर पर कैसे उनका नाम लिखूँ
पिता के एक वचन की खातिर जिन्होंने राज्य त्यागा था
दंभ नहीं था लेशमात्र, व्यवहार सरल और सादा था
जिनके चरणों के स्पर्श से अहिल्या का भाग्य जागा था
जूठे बेर खाए शबरी के, प्रेम का ये परिणाम लिखूँ
रावण से अवगुण रखकर पर कैसे उनका नाम लिखूँ
यज्ञ की रक्षा हेतु जिन्होंने खर – दूषण को मारा था
बालि का वध करके अपने सखा को दुख से उबारा था
बंधु – बांधवों सहित दशानन को रण में संहारा था
चाहता हूँ उस वीर के चरणों में अपना प्रणाम लिखूँ
रावण से अवगुण रखकर पर कैसे उनका नाम लिखूँ
जिनकी एक झलक से सोए भाग्य सुधरने लगते हैं
गूँगों को वाचा मिलती है, अँधे देखने लगते हैं
जिनके नाम की महिमा से पत्थर भी तैरने लगते हैं
इच्छा तो है उनके चरणों को मैं अपना धाम लिखूँ
रावण से अवगुण रखकर पर कैसे उनका नाम लिखूँ
दिल चाहता है मेरा भी इस कलम से मैं श्रीराम लिखूँ
रावण से अवगुण रखकर पर कैसे उनका नाम लिखूँ
— भरत मल्होत्रा