गज़ल
कहीं बंद किवाड़ों में भी आरज़ू सिसकती होगी।
अपने अरमानों को पूरा करने को तरसती होगी।
कुछ बेड़ियां बेवजह कायम थी ज़िन्दगी में मगर
रह रहकर उनमें बगावत सी कोई मचलती होगी।
कैसे कह दोगे नहीं गंजाइश थी कोई भी मुनासिब
कौन खुशबू है जो न कभी कहीं महकती होगी।
था वास्ता इक अंजानी सी इबादत का इस कदर
यूं अश्कों से फिर हर पल ज़िंदगी गुज़रती होगी ।।।
कामनी गुप्ता ***