याद करने की रेखा
मै कभी देखा न तुमने कभी देखा।
तो क्यों बनाई याद करने की रेखा।
अजनबी हो जायें अब इस जहाँ में,
तो क्यों करें हम यहाँ देखीं-देखा।
तूँ अपनी दुनिया जाओ,
मैं अपनी दुनिया जाऊँ,
तूँ अपना घर बसाओ
मैं अपना घर बसाऊँ
मैं तुममें जो समझा वो न देख पाया।
समझने की कोशिश की न हो पाया।
अब राह बदल लो तूँ मेरी जिन्दगी से,
चाल बदल लो तूँ मैं खुश न रह पाया।
@रमेश कुमार सिंह /०३-०१-२०१६