अजीब इत्तफाक
क्या इत्तफाक है
जाने कब से ख्वाहिश थी
उन्हें सिर्फ अपना बनाने की
उनके संग
प्रेम के गीत गाने की
पर वो तरसाते रहे
और हमसे दूर जाते रहे
पर भला हो जलने वालों का
जो जितना खुद जलते रहे
और हमे भी जलाते रहे
उतना ही “वो”
मेरे और नज़दीक आते गए
आज वो भी वक़्त आया है
दुष्मनों की खुशीआं गम बन गए हैं
और कल तक जो अलग थे
आज मैं और वो “हम” बन गए हैं।