बदलता विचार
जब आवश्यक होती है
अपनों के पास,
लोग सटे रहते रहते हैं।
खुशामद करतें हैं,
हथेली पर लेकर चलते हैं
बहुत सुंदर हैं
बहुत अच्छे हैं
परोपकारी हैं
विचारवान हैं
इन शब्दों से
लोगों के बीच
करते हैं उनका श्रृंगार
ज्यों ही उनकी –
आवश्यकताएं पुरी हो जाती है
अब जरूरत नहीं पड़ेगी
ऐसा महसूस होता है
त्योंही अपना तेवर
बदलने लगते हैं
बहुत खराब है
बुद्धि नहीं है
लालची हैं
अपनत्व की भावना ज्यादा है
कुछ भी समझ में नहीं आता
चोरों की संज्ञा देते हैं
इन शब्दों से करते हैं
उनका श्रृंगार
फिर भी –
श्रृंगार करने वालों के बीच
यही भावना बनी रही
इन्हें ऐसा करके छोड़ा जाय कि
ये जिन्दगी भर पश्चाताप करें
शायद इसी भावना से
करतें हैं दो तरह का
शब्दो से श्रृंगार।
एक समय का वो श्रृंगार
एक समय का यह श्रृंगार
शायद यह समय का फेर है
या उस मनुष्य की सादगी कहें
जिसने मानव धर्म की
रीति -रिवाज अपनाई
अपने मन में यही भाव लिये
ये मेरे अपने हैं
ये मेरे भाई हैं
ये इधर उधर भटकेंगे
ये अच्छी बात नहीं होगी
दर-दर की ठोकरें खायेंगे
यही सोचकर
इन्होंने साथ दिया।
इसकी किमत मिलती है
समय समय पर शब्दों श्रृंगार मिला।
कुछ ऐसा –
ईश्वर ने भी इन पर ना ध्यान दिया
अपनों का भी ना साथ मिला
फिर भी खुशिया इनके अन्दर
भरा हुआ खुशियों का समुन्दर
दूसरों की खुशियों के खातिर
अपनी खुशियां त्याग दिए
फिर भी अपनों के बीच में
कभी नहीं महान हुए।
______रमेश कुमार सिंह /२१-०१-२०१६
सही है। कहीं धूप कहीं छाया।