गजल में महिला कामगार
श्रम के बल पर जहान का आशियाँ बनाती
नींव में अपने दर्द की दास्तां छिपाती .
मजबूरियों की आँच पर मौसमों को झेलकर
कम आय से अपनी पेट की आग बुझाती.
साथ अगर उनका हमको न मिला होता तो
तारीखदानों के ताज में नूर न बरसाती.
मजदूर महिला देश की उन्नति के खातिर
प्रसव के बाद भी कदम से कदम मिलाती .
रोजी , रोटी के लिए करे शिशु संग काम
ध्यान अपना न रखने से सेहत लड़खड़ाती .
शोषण, अत्याचार की आग में ये न जले
दो ‘मंजु’ मान जिंदगी इनकी चमकाती .
— मंजु गुप्ता