कविता : स्त्री शक्ति
कोमल ही नहीं
कठोर भी है
कि विषम परिस्थितियों में भी
खड़ी रहती
चट्टानों की तरह
डट कर..
मृदुभाषिनी ही नहीं
वाकपटु भी है
कि चकित कर दे
प्रश्नों की चुभती
बौछारों के
प्रत्युत्तर देकर..
भावुक ही नहीं
सहनशील भी है
सृष्टि के सृजन हेतु
सह लेती
प्रसव की पीड़ा
हँस कर …
नारी है यह
धरती जैसी
उसके जैसा इसका हर गुण
कभी लहलहाये
फूटे कभी ज्वाला की तरह
लावा बन कर…
दुर्गा चण्डी का स्वरूप
ममतामयी माँ का रूप
अपनी पहचान
रखे कायम
आगे बढ़ती
जीवन पथ पर…
कि प्रकृति की प्रकृति ही विशिष्ट बनाती है उसे ….
— शिप्रा खरे