नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष – 7
मैं प्रायः हर तीन दिन में एक लेख लिखकर अपने ब्लॉग में भेज देता था और वह लाइव हो जाता था. उन पर पर्याप्त संख्या में टिप्पणियाँ भी आ जाती थीं. मेरे विचारों को पढ़कर अनेक व्यक्ति जिनमें से अधिकांश स्वयं भी ब्लॉग लिखते थे, मेरे प्रशंसक बन गए थे. उनमें से कुछ के नाम दे रहा हूँ- सर्वश्री केशव, सचिन सोनी, विजय बाल्याण, रंजन माहेश्वरी, आलू प्रसाद, सौरभ दुबे, अपलम चपलम, अभिषेक, सौरभ श्रीवास्तव, बिजेंद्र, राज हैदराबादी, हुकम शर्मा, मदनलाल, चोको, श्रीमती कांता उज्जैन, श्रीमती लीला तिवानी आदि. इनमें से कई आज भी मेरे घनिष्ट मित्र हैं.श्री अपलम चपलम का अल्पायु में ही किसी घातक बीमारी से देहांत हो गया था.
हालाँकि कई अन्य लोग जिनमें मुसलमान सज्जन अधिक थे मेरे आलोचक भी बन गए थे. उनमें से कुछ के नाम हैं- बिरजू अकेला, सचिन परदेशी, शीराज़, शहनाज़ खां उर्फ़ जग्गी, डॉ अनवर, मो. अफज़ल, स्वामी चंद्रमौली आदि. इनमें से प्रथम दो आज मेरे घनिष्ट मित्र हैं, हालाँकि मतभेद अभी भी बहुत हैं. शीराज़ हमेशा हर बात पर मेरी आलोचना ही करते थे. मैं यथासंभव उनको उत्तर देता था. लेकिन वे हमेशा रोमनलिपि में ही हिंदी लिखा करते थे, जिसको पढने और समझने में बहुत समय नष्ट होता था. इसलिए बाद में मैंने उनकी टिप्पणियों का उत्तर देना प्रायः बंद कर दिया था. हालाँकि कभी-कभी उत्तर दे देता था.
प्रारंभ में मेरे लेख केवल गाँधी-नेहरु-कांग्रेस की आलोचना में ही होते थे. इस बात पर मेरे कई मित्रों को शिकायत होती थी. इसलिए मैंने यह निश्चय किया कि बीच बीच में अन्य विषयों पर भी लिखा करूँगा. इसी के अनुसार मैंने एक लेख लिखा, जिसमें पोलीथिन की समस्या का व्यावहारिक समाधान बताया गया था. इसका लिंक नीचे दे रहा हूँ.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%A…
इस लेख पर अनेक कमेंट आये. अधिकांश ने प्रशंसा की. कुछ ने शंकाएं कीं और एकाध सज्जन ने खुली आलोचना भी की. मैंने यथायोग्य उनका उत्तरदिया.
मैंने प्रचलित “गीता सार” का विरोध करते हुए एक लेख बहुत पहले लिखा था, जो मथुरा से प्रकाशित आर्यसमाज की पत्रिका ‘तपोभूमि’ में भी छपा था. उसे खोजकर मैंने अपने ब्लॉग पर लगाया. उसका लिंक नीचे है-
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%9…
इस लेख में मैंने प्रचलित “गीता सार” के एक-एक बिंदु की क्रमशः समीक्षा की थी और स्पष्ट किया था कि किस प्रकार उसमें गीता के उपदेशों का सत्यानाश किया गया है. इसके अलावा मैंने अपना वास्तविक गीता सार भी दिया था.
मेरे इस लेख के समर्थन में कई कमेंट आये थे. एकाध ने कुछ प्रश्न पूछे थे, जिनका उत्तर देने की कोशिश मैंने की थी.
— विजय कुमार सिंघल
वैशाख कृ. १, सं. २०७३ वि.
यह लेख पहले भी अपने मोबाइल पर पढ़ा था। उनदिनों मेरे कंप्यूटर में यह साइट खुल नहीं रही थी। आज पुनः पढ़ा है। इस लेख से आपके कार्यों के बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिली। सादर।
यह लेख पहले भी अपने मोबाइल पर पढ़ा था। उनदिनों मेरे कंप्यूटर में यह साइट खुल नहीं रही थी। आज पुनः पढ़ा है। इस लेख से आपके कार्यों के बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिली। सादर।
विजय भाई , जितना भी समझ आया दोनों ब्लोगों को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा . सिख धर्म तो बहुत नया धर्म है लेकिन इतने कम समय भी इतना कुछ गलत इस में भर दिया गिया है कि असलीअत से बहुत दूर हो गिया है .
धन्यवाद, भाई साहब ! आपका कहना सही है. बहुत से स्वार्थी लोग धर्म के नाम पर अधर्म भर देते हैं. इसका कुपरिणाम आगे की पीढ़ियों को भुगतना पड़ता है. इसीलिए बहुत से लोग नास्तिक हो जाते हैं.
विजय भाई , जितना भी समझ आया दोनों ब्लोगों को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा . सिख धर्म तो बहुत नया धर्म है लेकिन इतने कम समय भी इतना कुछ गलत इस में भर दिया गिया है कि असलीअत से बहुत दूर हो गिया है .
प्रिय विजय जी, हमने तो आपके विवेकपूर्ण व ज्ञानवर्द्धक लेखों से बहुत कुछ सीखा.
प्रणाम बहिन जी ! बहुत बहुत धन्यवाद ! हमें भी आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला है. भाई गुरमेल जी से आपने ही परिचित कराया है हमें.