कविता : मिलन
बहुत दूर हो
तुम नज़रों से
दीवारें भी
ऊँची-ऊँची है
दरवाज़ों पर भी
पहरा है
आवाज़ भी
लाँघ नहीं पाती
दहलीज़
आहट भी
नहीं आती कोई
मगर फिर भी….
झरोखे
जो दिखते नहीं
खुले हुये हैं
हर जज़्बात
हर एहसास
बहे चले आते हैं
हवा के साथ
और इन्हीं के जरिये..
निगाहों में
अक्स तुम्हारा
बना जाते हैं
ज़ुबां पर
गीत तुम्हारे ही
गुनगुनाते हैं
मुझको मैं नहीं
रहने देते हैं
तुम बना जाते हैं …
कि खुशबू को हवा में मिलने से कौन रोक पाया भला …
— शिप्रा खरे