कविता

कविता : मिलन

7249_10153839733768185_5226951869891416869_nबहुत दूर हो
तुम नज़रों से
दीवारें भी
ऊँची-ऊँची है
दरवाज़ों पर भी
पहरा है
आवाज़ भी
लाँघ नहीं पाती
दहलीज़
आहट भी
नहीं आती कोई
मगर फिर भी….
झरोखे
जो दिखते नहीं
खुले हुये हैं
हर जज़्बात
हर एहसास
बहे चले आते हैं
हवा के साथ
और इन्हीं के जरिये..
निगाहों में
अक्स तुम्हारा
बना जाते हैं
ज़ुबां पर
गीत तुम्हारे ही
गुनगुनाते हैं
मुझको मैं नहीं
रहने देते हैं
तुम बना जाते हैं …
कि खुशबू को हवा में मिलने से कौन रोक पाया भला …

शिप्रा खरे 

शिप्रा खरे

नाम:- शिप्रा खरे शुक्ला पिता :- स्वर्गीय कपिल देव खरे माता :- श्रीमती लक्ष्मी खरे शिक्षा :- एम.एस.सी,एम.ए, बी.एड, एम.बी.ए लेखन विधाएं:- कहानी /कविता/ गजल/ आलेख/ बाल साहित्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :- साहित्यिक समीर दस्तक सहित अन्य पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 10 साझा काव्य संग्रह(hindi aur english dono mein ) #छोटा सा भावुक मेरा मन कुछ ना कुछ उकेरा ही करता है पन्नों पर आप मुझे मेरे ब्लाग पर भी पढ़ सकते हैं shipradkhare.blogspot.com ई-मेल - [email protected]