बाल कहानी

बाल कहानी : बचपन की सीख

“मम्मी बडी़ जोर से भूख लगी है, जल्दी से खाने को दो न।” रसोई में काम कर रही माँ से मुन्ना ने लिपटते हुए कहा। माँ ने ज्योहिं पलट कर देखा तो सिर पकड़ लिया ।गुस्सा होते हुए बोली “ये क्या है मुन्ना? अभी दस मिनट पहले नहला कर साफ कपड़े पहनाए थे और तुम फिर गंदे हो कर आ गए। कितना तंग करते हो। जाओ अब खुद ही साफ सुथरे हो कर आओ, मैं खाने के लिए देती हूं।”

यह सब रोज की दिनचर्या मे शामिल था।असल मे सात साल का मुन्ना शैतानी से सबको हैरान किए रहता था। छोटा था फिर भी एक जगह टिक कर नहीं रहता था। कब आंखों से ओझल हो जाता पता ही नहीं चलता। बाहर जाते ही खेल में ऐसा मगन होता कि न चीजों का ख्याल रहता न समय का। हर दूसरे दिन चप्पले खो आता । घर भर में सबका लाडला और आंखों का तारा था। इसलिए दादा दादी के कारण कोई कुछ नहीं कह पाता था ।

वैसे मुन्ना ने स्कूल जाना शुरु कर दिया था।पढ़ने लिखने में तेज था। स्कूल में अच्छी तरह रहता और खूब प्यारी बात करता । उसके प्यारेपन के कारण वह सब शिक्षकों का फेवरेट था। यही वजहों से वह निडर हो गया था।

इसी बीच जब घर से पैसे चिल्लर गायब होने लगे तब सबके कान खडे हो गए और नौकर चाकर से पूछताछ की गयी। एक नौकर ने ड़रत ड़रते बताया कि किराना वाला कह रहा था कि मुन्ना अपने दोस्तों के साथ कुछ लेने आने लगा है और फिर मंदिर में बैठ कर खाते हैं। यह सुनकर पापा तुरंत मंदिर गए। चाचा जी को देखकर सब बच्चे भाग गए। मुन्ना डांट खाने के ड़र से घर आते ही रोने लगा। माँ ने चुप कराया और दादा दादी ने भी सख्ती करने से मना कर दिया। पापा को भी उसके भोले चेहरे पर तरस आ गया। उन्होंने उसे प्यार से समझाना शुरू किया- “बेटा देखो ऐसे बिना पूछे कोई चीज़ लेना चोरी कहलाती है और चोरी करना बुरी बात है। हम सब तुमसे कितना प्यार करते हैं। तुम्हारी हर जरूरत पूरी करते हैं, फिर बताओ ऐसा किया जाता है क्या? तुम्हें जो चाहिए हमें कहो। तुम तो होशियार हो । अच्छे से पढ़ लिख कर बड़ा अॉफिसर बनना है। अच्छे बच्चों को ही ईश्वर और बडे़ आशीष देते हैं। अब से कोई गलत बात नहीं करोगे?”

मुन्ना को भी समझ आ रहा था। वो पापा के गले लगकर बोला- “नहीं पापा, अब कभी गलत काम नहीं करूंगा।” मुन्ना ने सबको सॉरी कहा , पैर छुए और पापा उसे स्कूटर पर घुमाने निकल गए।

डॉ. अमृता शुक्ला

नाम....डॉ श्रीमती अमृता शुक्ला जन्म तिथि....11march 1960 जन्म स्थान.....भोपाल म.प्र. पितामह......विश्व विद व्याकरणाचार्य पं.कामता प्रसाद गुरू पिता........स्व.डॉ राजेश्वर गुरु साहित्य कार पति.......श्री अनिल शुक्ला शिक्षा.......एमए हिंदी,पीएचडी,बीएड रुचि......संगीत,पठन पाठन,लेखन प्रकाशित पुस्तकें....."बेतवा और रेवा ,'" काव्य संग्रह "धीरे धीरे रे मना" प्रकाशित रचनाएं......ठाणे से प्रकाशित महिला काव्य संकलन "अभियान में ग़ज़ल_दुष्यंत के बाद दिल्ली से प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह में ग़ज़लें जेएमडी पब्लिकेशन दिल्ली से प्रकाशित नारी चेतना के स्वर एकता की मिसाल ,श्रेष्ठ काव्य माला भाग _एक और दो,स्वर्ण जंयती काव्य संग्रह में रचनाएं।कवरधा छ.ग.से प्रकाशित "काव्य सुमन " में रचना जालौन उ.प्र.से प्रकाशित काव्य संग्रह "प्रयास में रचना ,स्त्री विमर्श__" समकालीन कविता का नया आया" बडोदरा से प्रकाशित काव्य संकलन में रचना "काव्य सुधा"भोपाल से प्रकाशित काव्य संग्रह भाग एक दो ।पत्रिका पंखुरी उत्तराखंड से,मासिक पत्रिका शाश्वत भारती उज्जैन से,विवेक वाणी पत्रिका बडवाह खरगौन,अपना बचपन पत्रिका भोपाल में रचनाएं प्रकाशित।हम सब साथ साथ नई दिल्ली से प्रकाशित पत्रिका में रचनाएं, समाज कल्याण दिल्ली से प्रकाशित पत्रिका में एवं हापुड से निकलने वाली आगमन में रचनाएँ प्रकाशित। सम्मान......पुष्पगंधा प्रकाशन कवरधा के द्वारा काव्य सुमन सम्मान।म.प्र.नवलेखन संघ भोपाल द्वारा साहित्य मनीषी एवं भाषा भारती सम्मान। हम सब साथ साथ नई दिल्ली द्वारा वरिष्ठ प्रतिभा सम्मान,पूर्वोतर हिंदी अकादमी शिलांग द्वारा डॉ महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान । प्रसारण......रायपुर आकाशवाणी से कविताओं एवं कहानी का प्रसारण।