हास्य-व्यंग्य : भेड़िया आया
पुलिस कंट्रोल रूम में ड्यूटी पर चाय की चुस्कियाँ लेते हुए जिले अपने सहकर्मी नफे से बोला, “भाई नफे! वो औरत कौन सी थी जो आए दिन झूठी कॉल करके हम पुलिसवालों का जीना हराम किए हुए थी?”
“अरे भाई जिले! तूने भी सुबह-सवेरे किस मनहूस का जिक्र छेड़ दिया। उस औरत ने तो 100 नंबर को गॉसिप करने वाला नंबर बना लिया था। सुबह-शाम जब जी करे फोन मिला देती थी।” नफे ने नाराजगी से कहा।
जिले ने समझाया, “भाई शायद उसके दिमाग में कोई दिक्कत रही होगी?”
“मुझे तो वो सनकी और पागल ही लगती है। कभी-कभी तो वो हम पुलिसवालों को इतनी गन्दी और भद्दी गालियाँ बकती है कि किसी को बताने में भी शर्म आती है।” नफे गुस्से में बोला।
जिले ने चाय का आखिरी घूँट सुड़कते हुए कहा, “भाई वो औरत ही क्यों पब्लिक में बहुत से ऐसे सिरफिरे हैं जो किसी न किसी बहाने 100 नंबर मिलाकर पुलिस की माँ-बहन एक करने से गुरेज नहीं करते हैं। जैसे कि हम उनकी भैंस चुराकर ले आए हों। इन सिरफिरों को ऐसा लगता है जैसे कि सारे ऐब हम पुलिसवालों में ही भरे हुए हैं और ये तो साक्षात् संत के रूप में ही इस धरती पर उतरें हैं। भाई अगर 100 नंबर पर कॉल करने के पैसे कटने लगें तो इनका एक भी फोन न आए।”
“सही कहा भाई। और यही बात परसों मैंने उसको बोली भी थी कि मैडम फ्री की कॉल है इसलिए तुम भी मजे ले रही हो। कभी इस बारे में सोचना कि जब तुम्हें वाकई में पुलिस की जरुरत पड़ेगी न तब पुलिस ये सोचकर तुम्हारी मदद को नहीं आएगी कि ये औरत तो झूठी कॉल करके फिरकी लेती है। और हाँ मैंने उसे बचपन में सुनी भेड़िया आया भेड़िया आया चिल्लाने वाले झूठे बच्चे की कहानी भी सुनाई थी और उस कहानी से उसको सबक लेने को कहा था।” नफे ने बताया।
जिले ने गंभीर हो पूछा, “तो भाई उस औरत ने उस झूठे लड़के की कहानी से सबक लिया या नहीं?”
नफे मंद-मंद मुस्कुराया, “सबक! भाई ये शब्द किसी जमाने में हमारे शब्दकोष में हुआ करता था, लेकिन अब तो इस शब्द से शायद इस युग के प्राणियों ने दुश्मनी मोल ले ली है और खासकर इस शहर के लोगों ने।“
जिले ने झल्लाते हुए कहा, “भाई मेरी तो समझ में नहीं आता कि ये लोग हमसे ऐसा व्यवहार करते क्यों है?”
“भाई इन लोगों ने अपने दिमाग में एक ही बात भर रखी है कि पुलिसवाले ठीक नहीं होते। देखा जाए तो हर विभाग में अच्छे और बुरे लोग मौजूद हैं। इसमें पुलिस ही अपवाद नहीं हैं।” नफे शिकायती लहजे में बोला।
जिले बोला, “भाई बात तो तेरी ठीक है। इन लोगों का पुलिस के प्रति ये उदासीन रवैया अपराधियों के हौसले बुलंद किए हुए है। अपराधी इन लोगों की आड़ में पुलिसवालों के साथ मारपीट तक करने से बाज नहीं आते।”
“और जब अपराधियों के साथ पुलिस कड़ी कार्यवाही करे तो ये लोग ही उनके रक्षक बनकर खड़े हो जाते हैं।” नफे ने कहा।
जिले नफे की बात का समर्थन करते हुए, “फिर एक दिन ऐसा भी आता है जब ये अपराधी ही अपने रक्षक बने इन लोगों की ऐसी-तैसी करने से बाज नहीं आते।”
“तब ये भले लोग ही अपनी छाती पीटते हुए शिकायत करते हैं कि पुलिस अपराधियों को संरक्षण देती है। अब ये और बात है कि जनता में मौजूद ये भले लोग ही ही पुलिस के हाथ बाँधने के लिए उत्तरदायी है।” नफे खिलखिलाया।
जिले बोला, “अब ये बात इन भले लोगों को भला कौन समझाए?”
“भाई वक़्त की मार कभी न कभी अपने आप समझा देगी।” नफे ने घोषणा की।
जिले ने पूछा, “खैर छोड़ इस बात को। तू ये बता कि कल रात को उस औरत का फिर से फोन आया था या नहीं?”
“आया था। भाई कुत्ते की पूछ कभी सीधी हुई है? कल वो खूब फोन मिलाती रही पर मैंने उसका फोन उठाया ही नहीं। परसों उसने गालियों की इतनी खेप दे दी थी कि कई दिनों का कोटा पूरा हो गया था। और यार वैसे भी कल मेरा जन्मदिन था और अपने जन्मदिन पर उस पागल औरत की भद्दी गालियाँ काहे को सुनता?” नफे ने बेफिक्री से कहा।
जिले बोला, “भाई तेरी बात सही निकली। कल वाकई में भेड़िया आ गया।”
“मैं तेरी बात का मतलब नहीं समझा।” नफे ने हैरान हो कहा।
जिले ने गंभीर हो बताया, “कल रात उस औरत के घर में घुसकर कुछ लोगों ने लूटपाट की और उसे जान से मार दिया। ये देख अख़बार में उस औरत के घर हुई लूटपाट की खबर छपी हुई है।”
यह सुन नफे ने जिले से हड़बड़ाहट में अख़बार लिया और बेचैनी से अख़बार में छपी उस खबर को पढ़ने लगा।