संस्मरण

मेरी कहानी 125

पिंकी की मैरेज रजिस्ट्रेशन से एक दिन पहले बहुत काम था और पिछले एपिसोड में मैं इस का वर्णन कर चुक्का हूँ। क़्योंकि हम दोनों पति पत्नी भी अभी जवान ही थे और यह घर में पहली शादी थी, इस लिए चिंता बहुत थी। यूं तो भा जी अर्जन सिंह ज्ञानो और उन के दोनों बेटे बलवंत और जसवंत बहुत काम कर रहे थे लेकिन फिर भी मुझे चिंता हो जाती, बलवंत मुझे हौसला देता और बोलता, “मामा ! फ़िक्र किओं करता है, बस ऐसे हो जाएगा ” और साथ ही वह चुटकी मारता । उसकी इस बात पर आज भी हम कभी कभी हँसते हैं और कहते है कि आज तो पिंकी के बच्चे भी पिंकी से बड़े हो गए हैं, वक्त कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला। खैर, मैं उस रात बहुत चिंता में था क़्योंकि उस रात बहुत तेज़ हवाएं चल रही थी और टैंट के ऊपर की शीट जिस को तरपाल बोलते थे, ऐसे लगता था जैसे ऊपर को सब कुछ उड़ा ले जायेगी और मैं टैंट के पोल को पकड़ के रखता। दाल सब्जिआं समोसे बगैरा सभी टेबलों पर रखे हुए थे, दूसरे दिन के लिए सारी तयारी मुक़्क़मल थी और सुबह को सिर्फ चाय ही बनानी थी, या दाल सब्जिआं गर्म करनी थी।

उधर दूसरे कमरे में औरतें गा रही थीं और मर्द लोग पहले तो पब्ब को चले गए और फिर वापस आ कर गप्पें हांक रहे थे, कुछ औरतें किचन में ही टेप रिकॉर्डर लगाए डांस कर रही थी। जब सभी सोने को चले गए तो हम अकेले ही रह गए थे और मैं टैंट की देखभाल में ही मगन हो गया। क़्योंकि बलवंत का अपना पोस्ट ऑफिस और साथ ही ग्रॉसरी स्टोर था इस लिए वह भी तकरीबन बारह वजे दूकान बंद करके मेरे पास टैंट में आ गया, सिर्फ यह देखने के लिए कि टैंट को कोई नुक्सान तो नहीं पहुंचा। उस ने हर तरफ धियान से देखा और कहा, “मामा जी तुम अब आराम से सो जाओ, कुछ नहीं होगा, टैंट बिलकुल सेफ है “. इस के बाद मैं भी बैड में चला गया लेकिन दो तीन घंटे सो कर फिर टैंट देखने आ गया। आज तो मुझे इन बातों पे हंसी आती है लेकिन उस समय मैं बहुत चिंतत था।

सुबह को पिंकी की सखिओं ने पिंकी को सजाया और सभी लड़कियां नीचे आ गईं। सारे महमान जिस में मेरी सगी बहन सुरजीत कौर, बहनोई सेवा सिंह, भतीजा दर्शन सिंह और उस की पत्नी और बच्चे, कुर्सिओं पर बैठ कर इंतज़ार करने लगे। रजिस्ट्रेशन का वक्त 11 वजे का था जो टाऊनहाल में होनी थी। कुछ देर बाद सभी घर के बाहर आ गए और अपनी अपनी गाड़ियों में बैठ गए और चलने लगे। विडिओ वाला अपना काम कर रहा था और हम वक्त से कुछ समय पहले ही पहुँच गए। कार पार्क टाऊनहाल के नीचे थी और कुछ गाड़ियों के लिए जगह ऊपर भी थी और हम को ऊपर ही जगह मिल गई। पिंकी को ले कर हम सभी वेटिंग रूम में बैठ गए। रजिस्ट्रेशन रूम में हम से पहले किसी अँगरेज़ कप्पल की शादी हो रही थी और जब वोह बाहर आ गए तो बाद में रजिस्ट्रार लेडी ने बाहर आ कर हमें बुलाया। कमरा कोई इतना बड़ा नहीं था और हमारे महमानों से भर गया। पिंकी और चरनजीत रजिस्ट्रार के टेबल के सामने बैठ गए।

रजिस्टरार ने पहले सभी डीटेल पूछे और फिर पहले चरनजीत ने OATH लेनी थी और उसने रजिस्ट्रार के पीछे पीछे बोलना था जो कुछ इस तरह था Groom: I, CHARANJIT HANSPAL____, take thee, HARKIRAT KAUR _____, to be my wedded Wife, to have and to hold from this day forward, for better for worse, for richer for poorer, in sickness and in health, to love and to cherish, till death us do part, according to God’s holy ordinance; and thereto I plight thee my truth.( स्रोत इंटरनैट) और इस के बाद पिंकी ने अपना नाम बोल कर ऐसे ही बोलना था जो उसने बोल दिया। इस के बाद दो गवाह हमारी तरफ से और दो गवाह लड़के वालों की तरफ से आगे आये और दस्तखत कर दिए। इस के बाद आखर में दोनों ने एक दूसरे को अंगूठियां पहना दी और सभी ने तालीआं वजा दीं और सभी बाहर आ गए।

बाहर आ कर अब फोटो सैशन शुरू हो गया जो बहुत कलरफुल था। इस में कुलवंत की भूमिका बहुत रही, उस ने हर एक रिश्तेदार को पिंकी और चरनजीत के साथ खड़ा करके फोटो खिचवाई। इस तरह तकरीबन पंद्रा बीस मिनट फोटो खिचवाते खिचवाते लग गए और वापसी शुरू हो गई। जब घर आये तो सभी महमानों को अब टैंट के नीचे बैठना था, इस लिए घर के पीछे का दरवाज़ा खोल दिया गया और महमान अंदर आ कर टैंट में बैठने लगे। बलवंत जसवंत और निंदी ही ज़्यादा आगे थे सर्व करने के लिए और क्योंकि बलवंत जसवंत को तो लड़के वाले सभी रिश्तेदार जानते ही थे और उन में बलवंत की बहन का ससुर और उस का सारा परिवार भी था, इस लिए वातावरण काफी खुशगवार था। गर्म गर्म समोसे पकौड़े जो कमल और कुछ और औरतें तल रही थीं, लड़के उठा कर महमानों के आगे रख रहे थे और मैं अपनी ओर के महमानों के साथ बैठा था। यह स्नैक्स लेने और चाए के बाद सभी बातें करने लगे। क्योंकि बहुत से महमान तो मुझे पहले ही जानते थे, इस लिए बहुत मज़ेदार वातावरण था। कुछ देर बाद लड़कों ने टेबलों पर बीअर के कैन रखने शुरू कर दिए और साथ ही मूंगफली और चिप्स के पैकेट और कुछ देर बाद मीट की प्लेटेंं और साथ ही विस्की की बोतलें।

अब माहौल गर्म हो गया था, सभी हंसी जोक्स छोड़ रहे थे, शायद सभी पे सरुर हो गया था। पता ही नहीं चला कब तीन चार बज गए और अब खाना सर्व होने लगा। जब खाना खत्म हुआ तो सभी जाने के लिए उठने लगे। हाथ मिलाते और सत सिरी अकाल बोलते बोलते सभी महमान गाड़ियों में बैठ गए और वापस लंडन को चले गए। क्योंकि सभी औरतें और बच्चे घर के अंदर ही बैठे थे, इस लिए उन्होंने खाना वहां ही खा लिया था और बहुत सी औरतें जाने लगी थीं। शाम तक सब चले गए और बलवंत जसवंत निंदी और कुछ और लड़के रह गए। अब काम रह गया था टैंट को फिर से खोलना और गुर्दुआरे से लाया हुआ सारा सामान वापस छोड़ कर आना। कई चक्र हम ने गुर्दुआरे के लगाए और गिण कर सारा सामान गुर्दुआरे के स्टोर कीपर को सौंप दिया। इस सारे काम से हम आठ नौ बजे फारग हुए। घर आ कर हम सब समर हाऊस पब्ब में चले गए और बहुत बातें कीं और आगे के प्लैन के बारे में भी बातें हुईं। कुछ देर बाद हम आ गए और सभी अपने अपने घरों को चले गए और मैं भी इतना सोया कि दूसरे दिन बहुत लेट बैड से उठा।

अब फिर सब नॉर्मल हो गया और काम पर जाने लगे। यूं तो माँ बाप को अपने सब बच्चों से पियार होता है लेकिन पहले बच्चे से कुछ ज़्यादा ही होता है। इसी तरह हमारा भी पिंकी से ज़्यादा लगाव था, ख़ास कर मुझे। इस का एक कारण यह भी था कि पिंकी शुरू से ही अपनी उम्र के लिहाज से ज़्यादा समझदार और बातें करने वाली थी। जितनी भी बच्चों की फोटो हम ने खींची, उन में सब से ज़्यादा पिंकी की ही थी। जब तीनों बच्चे छोटे थे तो मैं बच्चों के पास बैठ कर बहुत बातें किया करता था, कभी रात को देर हो जाती तो कुलवंत बोलने लगती और कुछ खीझ कर कहती, ” अब सो भी जाओ, सुबह को काम पर भी जाना है !” हम हंस पड़ते और मैं कहता, ” लो बैल बज गई ” और उठ कर बैड रूम की तरफ जाने लगते। एक बात को ले कर हम बहुत हंसा करते थे, पिंकी और रीटा का एक साल का ही फरक था, पिंकी नाम मैंने ही रखा था लेकिन पिंकी का नाम गियानी जी ने हरकीरत कौर रख दिया था लेकिन इस नाम से हमने उसे कभी नहीं बुलाया।

पिंकी होगी कोई पांच साल की और रीटा चार साल की, मैं अभी काम से आया नहीं था और कुलवंत बाथ रूम में नहाने के लिए चली गई और दोनों बेटियां खेल रही थीं। अचानक जब कुलवंत बाथ रूम से बाहर आई तो देखा कि पिंकी ऐस्प्रो की गोलीआं रीटा को खिला रही थी और रीटा को कह रही थी, “लो बेटा खा लो, तुम ठीक हो जाओगी”. दरअसल रीटा को कुछ दिनों से बुखार था और हम उस को चार चार घंटे बाद यह गोलीआं दे रहे थे। कुलवंत देखते ही घबरा गई और रीटा के मुंह में उंग्लिआं डाल कर गोलीआं निकालने लगी। मैं भी काम से आ गया और बात का पता लगने पर मैं भी घबरा गया और कुलवंत को बोला,”चलो अभी हसपताल चलते हैं “. पिंकी को ज्ञानी जी के घर छोड़ कर हम रॉयल हसपताल को चले गए। हम गोलीआं वाली शीशी भी साथ ले गए। डाक्टर ने सब बातें पूछ कर कोई दवाई रीटा को दी, और कुछ देर बाद रीटा ने उलटी कर दी। डाक्टर ने हमें बताया कि वह रीटा को एक रात हसपताल में रखेंगे।

रीटा को छोड़ कर जब हम जाने लगे तो रीटा ऊंची ऊंची रोने लगी, देख कर हम भी परेशान हो गए। बहुत देर तक हम इस इंतज़ार में बैठे रहे कि रीटा सो जाए, फिर हम चले जाएंगे लेकिन रीटा सो ही नहीं रही थी। फिर कुलवंत मुझे बोलने लगी कि रीटा ने दो दफा तो उलटी की थी और फिर शीशी में भी अभी बहुत गोलीआं बाकी थीं, इस लिए मैं डाक्टर को रीटा को घर ले जाने के लिए कहूं। जब मैंने डाक्टर से पुछा तो उस ने इंकार कर दिया। जब हम उठ कर जाने लगे तो रीटा ने फिर चीखना शुरू कर दिया। उस को रोते देख कर हमारा मन घबरा रहा था। फिर मैंने एक दफा फिर डाक्टर से रिक्वैस्ट की तो डाक्टर ने कुछ फ़ार्म लाये और उन्हें भर कर मुझे साइन करने को कहा। मैंने साइन कर दिए और रीटा को घर ले आये। घर आ कर रीटा बहुत सोई और सुबह उठी तो बिलकुल ठीक थी।

हमारे माँ बाप ने भी हमें ऐसे ही पाल पोषण किया होगा, जैसे अब हम अपने बच्चों का कर रहे थे। बहुत दफा कुलवंत के मामा जी की बेटी बलबीर और उस का पति गुरमुख जो बर्मिंघम में रहते हैं, जब हम को मिलने आते थे तो रात हमारे घर ही सो जाते थे। एक दफा जब वोह आये तो दूसरे दिन सुबह मैं ने काम पर जाना था। गुरमुख मुझे कहने लगा कि वह मुझे काम पर छोड़ आएगा। घर से चलते वक्त गुरमुख ने रीटा को भी कार में बिठा लिया। जब गुरमुख मुझे काम पर छोड़ कर जाने लगा तो रास्ते में रीटा मुझे न देख कर ऊंची ऊंची रोने लगी। रास्ते में साइड रोड पर एक पुलिस की कार खड़ी थी, पुलिस वाले ने गुरमुख को ओवर टेक कर के गुरमुख को खड़ा करा लिया और पूछने लगा कि यह किस का बच्चा था। गुरमुख ने जब बताया तो पुलिस मैन घर तक साथ आया और कुलवंत से पुछा कि यह किस का बच्चा था। आखर में पुलिस वाले ने सारी डीटेल लिखी और तब वह गया। जब काम खत्म कर के मैं घर आया तो मुझे सारा पता चला। ऐसी ही बहुत सी और बातें थीं, जिन को याद करके हम हँसते रहते थे। छोटे छोटे बच्चों के साथ खेलना भी कितना आनंदमई होता है!

जब क्रिसमस के दिन नज़दीक आते थे तो एक दिन बच्चों को देते थे जब वोह अपने पसंदीदा खिलौने और चॉकलेट स्वीट्स और क्रिस्प्स के पैकेट खरीदते थे। घर से जाते वक्त ही हम बच्चों को बोल देते थे कि वोह जी भर के चॉकलेट स्वीट्स बगैरा ट्रॉली में फैंकते जाए, संकोच नहीं करना, जितना चाहें ले लें । जब हम सुपर स्टोर में चले जाते तो मैं चॉकलेट औेर अन्य स्वीट्स के सेक्शन में जा कर बच्चों को बोलता,” चक्क लो !” और बच्चे जल्दी जल्दी अपनी पसंदीदा चीज़ें शॉपिंग ट्रॉली में फैंकते जाते। पिंकी हर चीज़ धियान से उठाती थी और सब से कम चीजें लेती थी लेकिन रीटा और ख़ास कर संदीप का मन भरता नहीं था और ट्रॉली में फैंकते जाते। जब घर आते तो तीनों बच्चे अपनी अपनी चीज़ें अपने बैगों में सम्भाल कर रखते। हम उन को ऐसे करते देख देख खुश होते। क्रिसमस ईव को ही बच्चों का काम शुरू हो जाता। क्रिसमस ट्री के साथ बहुत से चॉकलेट रख देते और एक एक करके खाने लगते। क्रिसमस के दिन तो हर घर में रौनक होती है और हम भी स्पैशल डिनर की तयारी शुरू कर देते। स्पैशल डिनर में गोरे काले तो सभी टर्की रोस्ट करते हैं लेकिन हमारे लोग ज़्यादा चिकन ही पसंद करते हैं लेकिन कुछ लोग टर्की भी बनाते हैं और इसी तरह हम भी कभी टर्की, कभी चिकन बना लिया करते थे। बच्चे और कुलवंत अपना काम शुरू कर देते और मैं वाइन की बोतल खोल लेता और चुस्कियां लेने लगता और साथ कुछ खाये जाता।

हर क्रिसमस लोगों को वैल विषज कहने के लिए तीन बजे रानी की स्पीच ब्रॉडकास्ट की जाती है और जब यह सपीच ब्रॉडकास्ट होती तो मुझ को सरुर आया होता और रानी कुछ धुंदली से दिखाई देती। रानी की स्पीच के बाद हम टेबल पर बैठ कर क्रिसमस डिनर खाने के लिए तैयार हो जाते। बच्चे और हम अपने सरों पर क्रिसमस कैप पहन लेते और सब मिल खाना शुरू कर देते, खाने के बाद होता था क्रिसमस पुडिंग, यह सब खाने खा कर हम रज्ज जाते और फिर क्रैकर खींच कर पटाखे बजाने लगते और काफी शोर मचता क्योंकि पटाखों के बीच में से छोटे छोटे कार्ड निकलते थे जिन को पढ़ कर बच्चे उछलते कूदते। इतना खा पी कर सब सुस्त हो जाते और मैं तो खुर्राटे लगाने लगता। शाम को खाना पचाने के लिए कुछ देर के लिए हम बाहर सैर करने निकल पड़ते लेकिन सर्दिओं के दिन होने के कारण जल्दी वापस आ जाते। क्रिसमस तो स्पेशल होता ही था लेकिन दूसरे तिओहारों पर भी बच्चों के साथ ऐसे ही रौनक होती थी।

बात कर रहा था पिंकी की तो मैं यह कहूंगा कि उस को सब बच्चों से ज़्यादा पियार मिला था। पिंकी झूले की बहुत शौक़ीन थी, तो एक दफा जब वोह तीन साल की होगी तो पार्क जाने की ज़िद करने लगी क्योंकि वहां झूले थे और उस दिन स्नो बहुत पडी हुई थी, उस की ज़िद के आगे मैं हार गया और उसे पार्क में ले गया और वहां कोई ना था। यहां झूले और अन्य बच्चों के मनोरंजन की चीज़ें थी वहां दो दो फ़ीट स्नो पडी हुई थी। मैं बड़ी मुश्किल से पिंकी को वहां ले के गया और उस को झोटे दिए और उस की फोटो भी ली, शायद अभी भी कहीं हो। इतना पियार बच्चों से मिला, अब याद करके एक सरुर सा आ जाता है और आज पिंकी की मैरेज हो गई थी। एक तरफ ख़ुशी भी हो रही थी कि वह घर बसाने जा रही थी और दुसरी तरफ दिल को कुछ कुछ हो रहा था। शायद इसी को ही विधि का विधान कहते हैं।

चलता. . .

6 thoughts on “मेरी कहानी 125

  • Man Mohan Kumar Arya

    आज की कहानी बहुत अच्छी लगी। एक पिता के रूप में पिंकी बेटी के विवाह पर आपके मन की जो स्थिति रही वह प्रायः सभी पिताओं की होती है। इसका मतलब है कि हम सब वा दुनिया के सभी लोगों का ब्रांड एक ही है और वह है ईश्वर का बनाया हुआ। उसने सबको एक समान इन्द्रियां, मन, बुद्धि और शरीर के अन्य सभी अंग दिए हैं। आप पिता की जिम्मेदारी से निवृत हो गएँ और आपने इससे जुड़े अनेक सुख दुःख देखे हैं, यह ईश्वर की कृपा है। आपका हार्दिक धन्यवाद एवं नमस्ते आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी।

    • धन्यवाद मनमोहन भाई , मैं सोचता हूँ कि असली जिंदगी तब ही शुरू होती है जब आप अपनी बेटी का हाथ एक ऐसे लड़के के हाथ में दे देते हैं जिन का आप को कुछ पता नहीं होता कि वोह आप की बेटी को सुख दे सकेगा या नहीं . यही बात है कि हम बेटी के माता पिता उस के बिछुड़ने पर रोते हैं कि आगे सुसराल में उस का भविष्य क्या होगा .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत रोचक कहानी, भाईसाहब ! बेटी के विवाह की पिता पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी होती है।

    • सही कहा विजय भाई . उस वक्त को याद करता हूँ तो हैरानी होती है कि कितना मुश्किल होता है बेटी को घर से विदा करना और साथ ही सम्धिओं से सावधानी से बात करना .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, बहुत रोचक एपीसोड, लग रहा है हमारे सामने ही शादी हो रही है. क्रिसमस के वर्णन में एक बार भी कुलवंत जी के जन्मदिन का ज़िक्र नहीं आया, लगता है अगला एपीसोड इसी पर आधारित होगा. प्रतीक्षा रहेगी.

    • हा हा लीला बहन , उस वक्त तो हमारा सारा धियान बच्चों की तरफ ही था .अब तो हमारे जनम दिन पर बच्चे ही ज़िआदा खुश होते हैं, tables turned upside down .

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