ग़ज़ल
तनहाईयों में मैं रोता हूँ याद करके तुम्हें
अश्कों से तकिए भिगोता हूँ याद करके तुम्हें
बर्दाश्त होती नहीं आज की हकीकतें जब
पुरानी यादों में खोता हूँ याद करके तुम्हें
मुझे खबर है कि तुम मेरे हो नहीं सकते
फिर भी सपने संजोता हूँ याद करके तुम्हें
वादा था तेरा इक रात मुझसे मिलने का
तबसे रातों को ना सोता हूँ याद करके तुम्हें
डुबो के खून-ए-दिल में मैं जज़्बों की कलम
लफ्ज़ों के मोती पिरोता हूँ याद करके तुम्हें
जनाजा मैं अपनी चाहत के अरमानों का
अपने ही कंधे पर ढोता हूँ याद करके तुम्हें
— भरत मल्होत्रा