कविता : मेरी मन मीत
मैंने उसे लाख भूलना चाहा,
फिर भी गीत निकल ही आते हैं ,
उसकी चन्चल यादों से..
हर पल जो बिताया उसके साथ
कभी ‘शेर’ कभी बन जाता है ‘मुक्ता’
ज़िदगी जीने का यह भी है एक नुक्ता,
तुम सामने आ जाती हो कभी ग़ज़ल कभी गीत बनके,
पर कब आओगी मेरी ज़िंदगी में मेरी मन मीत बन के,
गर तेरी यादों का सहारा भी न होता
तो यह दिल भी इतना बेचारा न होता,
आ जाओ मेरी ज़िंदगी में
तुझे भुला पाना अब मुमकिन नहीं,
तेरे सिवा मेरी ज़िंदगी की कोई मंज़िल नहीं.
— जय प्रकाश भाटिया