गीत : अब न सहेंगे…
अब ना सहेंगे कोई हमला,
अपने देश की माटी पर,
सीमा लांघ के चढ़ जाएंगे,
आतंकियों की छाती पर,
छप्पन इंची सीना अपना,
सबको अब दिखला देंगे,
देश के गद्दारों को छठी के,
दूध की याद दिला देंगे,
सोए हुए शेरों को तुमने,
पत्थर मार जगाया है,
अपने ही हाथों से अपनी,
मौत को आप बुलाया है,
ओछी हरकत पर तुम्हारी,
बार-बार चेताया था,
अपनी गोदी में बिठलाकर,
सर पे हाथ फिराया था,
पर तुमने कमजोरी देखी,
प्यार की इस परिभाषा में,
अब हम तुमसे बात करेंगे,
तुम्हारी ही भाषा में,
जो भी आँख उठाएगा अब,
ढूँढ-ढूँढ कर मारेंगे,
चुन-चुन कर इस देश के दुश्मन,
मौत के घाट उतारेंगे,
जो भी इन्हें पनाह देगा,
उसको भी साथ सज़ा देंगे,
अलगाववादियों के घर की,
हम ईंट से ईंट बजा देंगे,
हम प्रताप के वंशज हैं,
और पृथ्वीराज के बेटे हैं,
अपने सम्मान की खातिर हम,
सौ बार आग पर लेटे हैं,
गुरू गोबिंद और शिवाजी का,
है खून हमारी रग-रग में,
बाहों में फौलाद भरा है,
और बिजली है नस-नस में,
जयचंद की औलादों के,
अब सभी ठिकाने तोड़ेंगे,
इस आतंक के महिषासुर को,
हम जिंदा अब ना छोड़ेंगे,
कसम है हमको मातृभूमि की,
इसकी शान बचानी है,
कफन बाँध कर घर से निकला,
अब हर हिंदुस्तानी है,
— भरत मल्होत्रा